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________________ Marrik परीषह-जयीxxxxxxxx ___“ ठीक है । ऐसा ही होगा पर एक बात ध्यान रखें हमें इस प्रयोग या परीक्षण का उद्देश्य किसी को भी ज्ञात नहीं होने देना है । इसे बस एक परीक्षण ही बना रहने दे ।" राजा ने ज्योतिषी व मंत्री जी को आदेश देते हुए प्रयोगों के बारे में पूछा । “महाराज आप अपने सभी पुत्रों को एक स्थान पर पंगत में खीर का भोजन करने बैठायें । वहीं एक सिंहासन व नगाड़ा रखें । जब खीर खाना राजकुमार प्रारंभ करे उसी समय आप कुत्तों का झुंड वहाँ छुड़वा दें । उस अप्रत्याशित श्वान आक्रमण के समय जो राजकुमार निडर होकर वही रखे सिंहासन पर बैठकर नगाड़ा बजाता जाये , खीर खाता जाये ,और कुत्तों को भी खीर खिलाता जाये । वह कुत्तों के स्पर्श से अछूता रहकर खीर खाये । वही राजगद्दी का सच्चा वारिसदार बनने योग्य माना जाये । " दूसरे आप एक स्थानपर सिंहासन-छत्र एवं चँवर राज्यचिन्हों को सजाकर रखें । उसी समय आग लगे । उस समय स्क्यं की रक्षा के साथ इन राजचिन्हों की जो रक्षा करके उन्हें बचा ले वही इस पद के योग्य समझा जाये । ज्योतिषी ने परीक्षण के दोनों उपाय सुझाये । "मेरे प्यारे पुत्रों । कल मेरा जन्मदिन है । कल मैं चाहता हूँ कि एक खीर की दावत हो । तुम सभी राजकुमार खीर खाने की स्पर्धा करो | जो सर्वाधिक खीर खायेगा । उसे पुरस्कृत किया जायेगा। '' महाराज उपश्रेणिके ने सभी पुत्रों को एकत्र करके स्पर्धा के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा । सभी राजकुमारों को ऐसी नई स्पर्धा के बारे में जानकर आश्चर्य हुआ । पर पिता की आज्ञा थी । एक नया खेल था । अतः सभी ने स्वीकार कर लिया। दूसरे दिन यथा समय राजकुमारों के मध्य एक सिंहासन रखा गया । पास ही एक नगाड़ा सजाया गया । सभी राजकुमार अपने आसनों पर बैठ गये। उत्तम मेवे दार सुगन्धित खीर परोस दी गई । सभी राजकुमारों ने जैसे ही खीर खाना प्रारम्भ किया, पूर्व योजना के अनुसार उन पर खूखार कुत्तों का झुंड छोड़ दिया गया । इन भयानक तगड़े खूखार कुत्तों का आक्रमण होते देखकर डर के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003695
Book TitleParishah Jayi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherKunthusagar Graphics Centre
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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