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________________ परीषह - जयी अपनी पुत्री तिलकवती को सौंपा । महाराज की आँखों की नींद ही गायब हो गई थी । निद्रा देवी की जगत तिलकवती बस गई थी । ऐसी ही हालत तिलकवती की थी । दोनों की रात आँखों में ही कट गई । दूसरे दिन वहीं महाराज के साथ भीलराज यमदंड ने अपनी जाति की प्रथा के अनुसार अपनी कन्या का पाणिग्रहण करवा दिया । अपने अनुचरों के साथ राजा का पथ दर्शन कराने हेतु भेजा । महाराज राजगृह में नववधू के साथ लौटे । नगर वासियों को आश्चर्य हुआ कि उनके महाराज नया विवाह करके लौटे हैं। पूरे नगर में धूमधाम की गई । पूरा नगर सजाया गया । पूरे राजकीय उत्सव के साथ विधिवत विवाह विधि सम्पन्न हुई । अन्य रानियों, दरबारियों और प्रजाजन को उत्सुकता थी उस रूपवती को निरखने की जिसने उनके राजा को बांध लिया था । अजेय को भी जीत लिया था । पर तिलकवती का सौन्दर्य देखकर लोगों की जिज्ञासा शांत हुई | भीलकन्या भी इतनी रूपसी हो सकती है ! यह कल्पना भी उन्हें नहीं थी । उन्हें लगा कि कोयले की खान में हीरा दमका है । लोग राजा की पसंद और तिलकवती के रूप की प्रशंसा करने लगे । रानियाँ प्रसन्न भी हुई और सौतिया src भी आँखों में झलका । राज्य के दरबारी मंत्री गण आनेवाले कल के संघर्ष से चिन्तित भी थे । महाराज उपश्रेणिक ने नई दुल्हन के लिए नया महल बनवाया । उसके सुख साधन की पूरी व्यवस्था की । प्रेम में पगे महाराज ने अपने दिये गये वचन के अनुसार तिलकवती को पटरानी के पद पर विभूषित किया । वे तिलकवती के प्रेम में खो गये । यथा समय पटरानी तिलकवती ने पुत्र को जन्म दिया । पूरे राज्य में खुशियाँ मनाई गई । गरीबों को मुक्त हाथों से धन दिया गया । प्रजा के हितार्थ अनेक कार्य सम्पन्न किये गये । पुत्र का नाम चिलातपुत्र रखा गया । समय के साथ चिलातपुत्र किशोरावस्था को प्राप्त हुआ । चिलातपुत्र का लालन-पालन राजघराने Jain Educationa International ५९ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003695
Book TitleParishah Jayi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherKunthusagar Graphics Centre
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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