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________________ Xxxxxxxx परीषह-जयीxxxxxxxxxx का पता चला । "सेठानी और वह जूती ..........।' "महाराज वह जूती मेरी बहू के पाँव की थी जिसे वह ९ ... भो रही थी, उस समय एक चील उसे मांस का टुकड़ा समझकर उठा ले गयी थी ,जो उसकी चोंच से छूटकर शायद वेश्या के मकान की छत पर गिरी थी । वही आप के पास लाई होगी । "सेठानी ने समस्त घटना कह सुनाई । ___ "सेठानी जी मैंने वह जूती उसी वेश्या को उपहार स्वरूप दे दी है।" " महाराज एक जूती लेकर वह क्या करेगी ,लीजिए यह दूसरी जूती इसे दे दीजिएगा कि जिससे वह पहन सके । क्योंकि अब वह जूती मेरी बहू के काम की नहीं ।" कहते-कहते यशोभद्रा ने दूसरी जूती भी महाराज को प्रदान की । जिसे महाराज के इशारे से उनके सेवक ने ग्रहण की । _____ महाराज इससे बड़े प्रभावित हुए । उन्होंने सेठानी से कहा, "सेठानी जी, आप बड़ी पुण्यशाली हैं । कि आप को ऐसा पुत्र प्राप्त हुआ । मैं इन्हें अवन्ती का सुकुमाल घोषित करता हूँ, वे मेरे राज्य की सुकुमालता और सौन्दर्य के प्रतीक महाराज प्रद्योतन सुकुमाल को संग लेकर जल क्रीड़ा हेतु हवेली में ही निर्मित सरोवर में गए । जल क्रीड़ा करते समय राजा की उगली से उनकी अंगूठी सरोवर में गिर गई । महाराज ने डुबकी लगाकर अपनी अंगूठी ढूढ़ने की कोशिश की । वहाँ उन्होंने देखा कि उनकी अंगूठी से अधिक कीमती हजारों गहने वहाँ पड़े हुए हैं । इस अनन्त वैभव को देखकर उनकी अक्ल की चकरा गई । वे सोचने लगे कि यह सब पुण्य का ही प्रभाव है । उनके मन में यही सदविचार उठा कि सम्पूर्ण सुख सुविधाएँ धन-धान्य ये सभी पूर्व जन्म के शुभ परिणामों के कारण सम्भव हैं। ___ यशोभद्रा सेठानी के महल के पीछे ,विशाल हरे-भरे उद्यान में आज भक्तों की भीड़ थी । उद्यान में विहङ्ग मुनि गणधराचार्य जो सुकुमाल के पूर्व जन्म के मामा थे , वहाँ विचरण करते हुए पधारे थे । समाचार नगर भर में फैल चुका था। अतः दर्शनार्थी अपना पुण्य-उदय मानते हुए दर्शन हेतु आ रहे थे । जिनागम की अमृत वाणी सुनने के लिए वे चातक की भांति मुनि श्री के मुखारविन्द को निहार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003695
Book TitleParishah Jayi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherKunthusagar Graphics Centre
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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