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Marrixxxपरीषह-जयीxxxxxxxx
अत्यन्त सुगंधित जूंबूफलों का समूह ,समस्त दिशाओं को प्रकाशित करनेवाला निधूर्म अग्नि, पुष्पित-फलित सुगंधित शालिक्षेत्र ,चक्रवात-हंसादि पक्षियों के मधुर कलरव के युक्त सरोवर एवं नाना मगरमच्छ से भरा हुआ विशालसागर ।"
पांचो स्वप्नों का वर्णन कर सेठानी जिज्ञासावश सेठजी के चेहरे को निहारने लगी।
“प्रिये ये अति मंगल स्वप्न हैं । तुम्हारे गर्भ में जो जीव पल रहा है । वह अत्यन्त स्वरूपवान ,भाग्यवान ,कान्तिवान सर्व कलाओं में निपुण होगा । इस सौन्दर्य में शील होगा । वह बचपन से ही विकार रहित होगा । संसार के भोगों को त्याग कर आत्मकल्याण हेतु निग्रन्थ बनेगा । जिसकी विद्या-चारित्र से जनजन का कल्याण होगा ।" स्वप्न-फल बताते हुए सेठने सेठानी को स्नेहवश अपने आलिंगन में बद्धकर लिया ।
गर्भ में पल रहे ऐसे महान शिशु के प्रति माता का प्यार और भी.उमड़ने लगा । गर्भ की वृद्धि के साथ सेठानी के मनोभावों में वात्सल्य छलकने लगा । उनकी दानवृत्ति और भी बढ़ गई । जिनेन्द्रभक्ति और स्वाध्याय में उनका मन अधिक लगने लगा । यद्यपि गर्भ भार से उनके अंगों में कृशता,आलस्य बढ़ रहा था-पर चित्तकी प्रसन्नता वृद्धिगत हो रही थी ।
हवेली की दासियाँ-परिचारिकायें सेठानी की सेवामें अहर्निश लगी रहती थीं । हवेली में सदाव्रत ही खुल गया था । वहाँ से किसी याचक को खाली हाथ लौटने का अवकाश ही नहीं था ।
ठीक नौ माह के पश्चात एक दिव्यस्वरूपी शिशु ने सेठानी जिनमती के गर्भ से जन्म लिया । शिशु का सौन्दर्य अनुपम था । ___पुत्रजन्म के समाचार ने सेठजी एवं हवेली के सभी कर्मचारियों में आनंद भर दिया । सेठजीने हाथ खोलकर दान दिया । परिजन-पुरजन सभी इस समाचार से प्रसन्न हो उठा । हवेली में मानों दिवाली ही जगमगा उठी । चारों ओर बधाइयों के स्वर गूंजने लगे।
सेठ अरहदास ने ज्योतिषी से पुत्र के ग्रहनक्षत्र पूछे । सेठानी जिनमती ने पांचों स्वप्नों में प्रथम स्वप्न सुगन्धित जंबूफलों को देखा था । अतः बालक का नाम जंबू कुमार रखा गया । शिशु जंबू कुमार द्वितीया के चाँद की तरह खिलने
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