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kkkk परीषह-जयीxxxxxxxx
“चिन्ता न करो माँ तुम्हें अभी सब पता चल जायेगा । ' मुनि वारिषेण ने रहस्यमयी वाणी में कहा ।
माँ मौन थी । सभी राजवधुएँ पूर्ण श्रृंगार कर आ गई थी । वे सभी अप्सराओं को लजा रही थीं । लगता था इन्द्रलोक की रंभा,मेनका,चित्रलेखा सभी यहाँ उतर आई हैं । वे सभी अपने सौन्दर्य से कामदेव को लजा रही थीं । उनके शरीर के कीमती वस्त्र और आभूषण जगमगा रहे थे । जैसे सितारे ही धरती पर उतर आये हों । सभी राजवधुएँ नतमस्तक खड़ी थी । उनकी हरिणी जैसी आँखें धरती पर जड़ी हुई थी । पति वारिषेण के वियोग में वे कुम्हला जरूर गई थी पर संयम का तेज उनके चेहरे को दैदीप्यमान कर रहा था ।
"माँ मैं चाँदी-सोने के बर्तनों में खाना खाऊँगा । " मुनि वारिषेण जी ने नया आदेश दिया ।
__ "क्या ?'' आश्चर्य से चेलनी महारानी ने पूछा । उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि उनका मुनि पुत्र चाँदी-सोने के बर्तनों में खायेगा । अरे वह तो मुनि है । हाथ ही उसका पात्र है ।
“माँ तू घबड़ा मत सब समझ जायेगी । " पुनः माँ को धैर्य बधाते हुए मुनिजीने समझाया ।
___ आदेशानुसार षड्सव्यंजन सोने-चाँदी के वर्तनों में सजा कर लाया गया । जब सब कुछ सज गया । तब गंभीर स्वर में मुनि वारिषेण ने साथी मुनि पुष्पडाल को संबोधित करते हुए कहा-“देखो मुनि पुष्पडाल | ये मेरा राजमहल है । अक्षय संपत्ति का मैं युवराज था । ये इन्द्राणी सी मेरी पत्नियाँ हैं । मैंने इनके साथ पाणिग्रहण करने के पश्चात संसार का सुख भोगा है । मैंने सदैव सोनेचाँदी के बर्तनों में भोजन किया है । मैं मखमल के गलीचों पर ही चला हूँ । यदि तुम्हें सम्पत्ति का ही मोह है तो तुम चाहो उतनी धनदौलत ले लो । अरे यदि धन दौलत या पत्नी-पुत्रादि ही सर्वस्व होते , अक्षय होते, साथ में जाने वाले होते , मुक्ति दिलाने वाले होते, तो हमारे पूर्वज राजा-महाराज ,तीर्थकर इसका त्याग क्यों करते ? पुष्पडाल ये सब तो क्षणिक हैं । मृत्यु तक के ही साथी हैं । यह धन क्या मृत्यु के पश्चात साथ आयेगा ? क्या कुटुम्ब परिवार साथ देंगे ? हम इस मरणधर्मा-रोग का घर-बूढ़े होने वाले शरीर के प्रति इतने आसक्त हैं जो
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