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________________ Xxxxxxxx परीपह-जयीXXXXXXXX पूरे राजगृह में यह समाचार फैल गया कि मुनि वारिषेण एवं मुनि पुष्पडाल पधारे हैं । लोग दर्शनार्थ आने लगे । पर आश्चर्य यह था कि वे सीधे जिनमंदिर या उद्यान में न रहकर सीधे राजमहल में पहुँचे । “क्या बात है । ये मेरा पुत्र व उसका बाल सखा दोनों मुनि वेष में होते हुए भी राजमहल में क्यों आये ? मुनि को तो मंदिर में ठहरना चाहिए । कहीं इनके मन चलायमान तो नहीं हो गये ? " मुनि महोदय को राजमहल में आया हुआ देखकर चेलनी के मन में अनेक शंकायें करवट लेने लगीं । __“विराजिये महाराज " कहकर चेलनाने एक काठ की एवं एक रत्नजड़ित चौकी रख दी । वे प्रथम परीक्षा करना चाहती थी कि देखे उनका बेटा कहाँ बैठता है। मुनि वारिषेण काठ की चौकी पर बैठे । पर पुष्पडाल मुनि विवेकचूक कर रत्नजड़ित चौकी पर बैठ गये । रानी चेलना को इस बात से शांति मिली कि उनका पुत्र मुनि धर्म में स्थित है ! फिर भी राजमहल में आने के कारण उनका मन अभी भी शंका से घिरा था । राजभवन में मुनि वारिषेण एवं मुनि पुष्पडाल को आया हुआ देखकर पूरा निवास ,राजपरिवार दर्शनार्थ उमड़ पड़ा । पर सबके चेहरों पर यह प्रश्न तो उभरता ही कि महाराज राजभवन में क्यों आये हैं ? ___“माता आप मेरी सभी पत्नियों को पूर्ण श्रृंगार करके मेरे समक्ष उपस्थित करें ।" वारिषेण मुनि ने माता से कहा । . यह सुनते ही चेलना रानी को आश्चर्य हुआ । उन्हें लगा निश्चित रूप से इसका मन काल से पीड़ित है । उन्हें इस समय पुत्र मोह से अधिक धर्म के रक्षण की चिन्ता सताने लगी । कहीं पुत्र के व्यवहार से पवित्र जैनधर्म एवं महान चारित्र धारी साधु बदनाम न हो जायें यही चिन्ता उन्हें परेशान करने लगी । वे कुछ क्षण हिचकिचाई । पर फिर मन कठिन करके पुत्रवधुओं को श्रृंगार करके आने का आदेश देकर आश्चर्य से मुनिओं की ओर देखने लगीं । "बेटा तुम जिस संसार को त्याग चुके हो उसे क्यों स्मरण कर रहे हो ? क्यों अपनी पत्नियों को बुलवा रहे हो ? " रानी चेलनी ने मुनि पुत्र वारिषेण से पूछा । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003695
Book TitleParishah Jayi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherKunthusagar Graphics Centre
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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