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________________ vrrrrr परीषह-जयी:-*--**-*-* धारदार तलवार को ऊपर उठाकर भरपूर जोर लगा कर वारिषेण की झुकी हुई गर्दन पर प्रहार किया । लोगों की आँखें इस प्रहार को देख न सकी । भय से बन्द हो गईं । एक क्षण के लिए लोगो के हृदय की धड़कने ही रुक गई । लेकिन आश्चर्य कि तलवार का जोरदार आघात भी वारिषेण की गर्दन को काटना तो दूर ,एक साधारण खरोंच भी न कर सका | गर्दन में फूलों की माला दमक उठी। जल्लाद ने दांतो तले अंगुली दबा ली । और सारी जनता में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई । वारिषेण अभी भी भगवान का स्मरण कर शान्तचित्त, सर झुकाये खड़े थे। हम तो पहले से ही कहते थे कि कुमार निर्दोष हैं | जरूर यह किसी की चाल है।" जो लोग कुमार को निर्दोष मान रहे थे वे अपने अनुमान की सत्यता सिद्ध कर रहे थे। __ चारों ओर कुमार वारिषेण का जय-जयकार हो रहा था । प्रजा उनके दर्शनों को उमड़ रही थी । सभी लोग यही भाव व्यक्त कर रहे थे कि “सच्चाई कभी दब नहीं सकती । अरे यही तो सच्चे साधू के लक्षण हैं । " “देखो कुमार के मुख पर कितनी शांति और नम्रता है | " “हे कुमार तुम धन्य हो । तुम्हारी एवं तुम्हारें चरित्र की जितनी प्रशंसा की जाये कम है । " “हे कुमार तुम सच्चे जिनभक्त हो । पवित्र हो । " इस प्रकार अनेक लोग अनेक उत्तम विशेषणों से कुमार की प्रशंसा और स्तुति कर रहे थे । यह समाचार जब महाराज श्रेणिक और रानी चेलनी ने सुना तो प्रसन्नता से भर उठे । रानी चेलनी तो राजघराने के समस्त नियमों-बन्धनों को तोड़ कर वधस्तंभ की ओर दौड़ी । उनके पीछे दास-दासी ,रक्षक भी दौड़े। अरे ! रानी को तो वस्त्र,आभूषण यहाँ तक कि पांव की जूतियाँ पहनने की भी सुध न रही। महाराज भी अपने अनुचरों ,दरबारियों के साथ वधस्तंभ की तरफ गये । महाराज श्रेणिक ने देखा वधस्तंभ पर कुमार वारिषेण मौन ,नतमस्तक प्रसन्न चित्त आँखें बन्द किए खड़े हैं ।जल्लाद उनके चरणों में झुके हैं । अपार जन समूह कुमार की जय-जयकार कर रहा है। __महारानी चेलनी ने दौड़कर कुमार को अपनी बांहों में जकड़ लिया । वे बार-बार उनके मस्तक गालों को चूमने लगीं । अश्रु की धारा बह रही थी । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003695
Book TitleParishah Jayi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherKunthusagar Graphics Centre
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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