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-XXXXXX** परीषह-जयीXXXXXXX
इधर यह सामाचार भी गली-गली में पहुँच गया कि महाराज श्रेणिक ने कुमार वारिषेण को मौत की सजा दी है । यह समाचार भी लोगो को उतना ही स्तब्ध और आश्चर्य में डालने वाला था जितना कि वारिषेण का चोरी का समाचार । कुछ लोग राजा की न्यायप्रियता की दुहाई दे रहे थे, कुछ लोग इस सजा को गुनाह के प्रमाण में अधिक मान रहे थे । गुनहगारों की दुनिया में सन्नाटा छा गया था ।
महाराज की कठोर आज्ञा का पालन करने के लिए सैनिक वारिषेण को वध स्तम्भ पर लाये । वारिषेण कुमार सिर झुकाये णमोकार मंत्र का स्मरण करते हुए मौन खड़े थे । लगभग पूरा शहर वधस्तम्भ के चौक में इकट्ठा हो गया था । नर-नारी की भीड़ इतनी अधिक हो गई थी कि कंधे से कंधे छिल रहे थे । सुकुमार वारिषेण को देखकर औरतों की आँखों से आँसू बह रहे थे । वे रो-रो कर कह रही थीं कि वारिषेण ऐसा कृत्य नहीं कर सकता। महाराज को इतनी कड़ी सजा नहीं देनी चाहिए । आश्चर्य तो इस बात का था कि जो लोग वारिषेण के विषय में अनेक प्रकार की अनर्गल बातें कर रहे थे, वे भी वारिषेण कुमार के चेहरे की सौभ्यता सरलता ,निश्पृहता देखकर पिघल उठे थे । उनका मन भी बार-बार यही कह रहा था कि ऐसा भोला-भोला राजकुमार ऐसा दुष्कृत्य नहीं कर सकता । अवश्य कोई षड्यन्त्र. या गलतफहमी है । कोई महाराज की जल्दबाजी में सुनाई गई सजा पर टिप्पणी कर रहा था ,तो कोई पूरी जांच करनी चाहिए थी, ऐसा अभिप्राय व्यक्त कर रहा था । उपस्थित सभी जनमेदनी में वारिषेण कुमार के प्रति श्रद्धा और सुहानुभूति उमड़ने लगी थी । सभी की आँखे नम थी।
वध करने वाला जल्लाद आज पहली बार सोच रहा था – “हे प्रभु मुझे ऐसे नीच कर्म के लिए क्यों बनाया है । इतने कोमल ,सरल कुमार को मारने का पाप मेरे सिर लगेगा । मेरा मन कहता है कि यह बालक निर्दोष है । मैं वर्षों से अनेक अपराधियों का वध कर चुका हूँ । परन्तु ऐसी वेदना मुझे कभी नहीं हुई। अपराधियों के चेहरों पर मैंने मृत्यु से पूर्व चेहरे पर भय की छाया देखी है । लेकिन इस राजकुमार के चेहरे पर भय की लकीर तक नहीं | चेहरा सौम्य है , आँखों में करूणा है ।"
यह सब सोचने पर भी जल्लाद को अपना कर्तव्य निभाना ही था । उसने
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