SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 8 :: तत्त्वार्थसार अतिरिक्त जो कुछ शब्द शेष रहते हैं उन्हें 'नाम' शब्द कहते हैं । नय-शब्द' का साधारणत: अर्थ अपेक्षा है। उक्त 'नाम' शब्द के अर्थ चार प्रकार के हो सकते हैं; इसलिए उन नाम शब्दों के भी चार भेद होते हैं। इन चारों भेदों में से पहला भेद सामान्य अपेक्षा से हुआ है और आगे के तीनों भेद उत्तरोत्तर अधिक विशेषता रखते हैं। विशेषता रखने पर भी कालसम्बन्धी विशेषता द्रव्यनिक्षेपपर्यन्त नहीं रहती, इसलिए तीन भेद द्रव्यार्थिक नय के विषय हैं। चौथा भावनिक्षेप काल सम्बन्धी विशेषता रखता है, इसलिए वह पर्यायार्थिक नय का विषय है। नाम निक्षेप का लक्षण या निमित्तान्तरं किंचिदनपेक्ष्य विधीयते। द्रव्यस्य कस्यचित् संज्ञा तन्नाम परिकीर्तितम्॥10॥ अर्थ-किसी वस्तु की उस संज्ञा को 'नाम' कहा है कि जिस संज्ञा के रखने का केवल उस वस्तु की पहिचान हो जाना ही प्रयोजन हो, दूसरा कुछ भी प्रयोजन न हो, अर्थात् नाम निक्षेप जहाँ माना जाता है वहाँ क्रियाअर्थ तथा गुणअर्थ नहीं देखा जाता है, केवल यह बात देखी जाती है कि इस शब्द का संकेत किस अर्थ के साथ है। जैसे कि हाथीसिंह का अर्थ एक लड़का मान लेना। स्थापना निक्षेप का लक्षण सोऽयमित्यक्षकाष्ठादौ सम्बन्धेनान्यवस्तुनि। यव्यवस्थापनामात्रं स्थापना साभिधीयते॥11॥ अर्थ-अनुपस्थित किसी एक वस्तु का दूसरे उपस्थित पदार्थ में सम्बन्ध या मनोभाव जोड़कर आरोप कर देने का नाम 'स्थापना' है। यह आरोप जहाँ होता है वहाँ ऐसी मनोभावना होने लगती है कि 'यह वही है'। उदाहरण-शतरंज के पांसे लकड़ी, माटी या पत्थर आदि के बनाये जाते हैं, परन्तु उनको लोग घोड़ा, हाथी, राजा, वजीर इत्यादि मानकर खेलते हैं। इसी प्रकार किसी देवी-देव की मूर्ति बनाकर लोग उसे वह देवी या देव मानने लगते हैं। 1. नयों का स्वरूप इसी अधिकार के अन्त में कहेंगे। द्रव्य शब्द का 'सामान्य' और पर्यायशब्द का 'विशेष' अर्थ होता है । द्रव्य व पर्याय को ग्रहण करनेवाला, ऐसा अर्थ द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक शब्दों का होता है, इसलिए ये दोनों शब्द नय-शब्द के विशेषण हैं। 2. इस निक्षेप को कई लोग विपरीत ज्ञान का कारण मानेंगे और विपरीत ज्ञान के जनक विषय अथवा पद्धति को सत्य न कहकर मिथ्या कहना चाहिए, इसलिए सत्य पदार्थों के संग्रह में स्थापना-निक्षेप का संग्रह नहीं करना चाहिए? इस शंका का समाधान हम यहाँ इतना ही करते हैं कि मनुष्य जिस प्रयोजन को साधने के लिए जिस वस्तु की अपेक्षा करता है उस वस्तु द्वारा यदि वह प्रयोजन सिद्ध हो जाए तो वह वस्तु सत्य क्यों न मानी जाए! मिथ्या या असत्य उसे कहना चाहिए जिससे कि इष्ट प्रयोजन सिद्ध न हो, वस्तुपरीक्षण का यही एक मार्ग है। इसका अधिक खुलासा वहाँ किया जाएगा जहाँ कि पदार्थों का लक्षण-स्वरूप कहेंगे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy