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________________ विषयानुक्रमणिका :: 39 छठा-प्रमत्तसंयत गुणस्थान सातवाँ-अप्रमत्त गुणस्थान आठवाँ-अपूर्वकरण गुणस्थान नौवाँ–अनिवृत्तिकरण गुणस्थान दसवाँ-सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान ग्यारहवाँ-उपशान्तकषाय, बारहवाँ-क्षीणकषाय गुणस्थान तेरहवाँ–सयोगकेवली, चौदहवाँ-अयोगकेवली गुणस्थान चौदह जीवस्थान-जीवसमास छह पर्याप्तियाँ एवं उनके स्वामी दश प्राण तथा उनके स्वामी आहारादि चार संज्ञाएँ चौदह मार्गणाएँ गति (पहली मार्गणा) इन्द्रिय (दूसरी मार्गणा) द्रव्य इन्द्रिय के भेद अन्तरंग निर्वत्ति का लक्षण बाह्य निर्वृत्ति का लक्षण आभ्यन्तर और बाह्य उपकरण भावेन्द्रिय लब्धि और उपयोग का स्वरूप इन्द्रियों के नाम और क्रम पाँचों इन्द्रियों तथा मन के विषय इन्द्रियों का विषय सम्बन्ध इन्द्रियों की आकृति जीवों में इन्द्रिय विभाग एकेन्द्रियादि जीवों के भेद द्वीन्द्रिय जीवों के नाम त्रीन्द्रिय जीवों के नाम चतुरिन्द्रिय जीवों के नाम पंचेन्द्रिय जीवों के नाम काय (तीसरी मार्गणा) में पृथिव्यादि जीवों की आकृति पृथिवी के प्रकार जलकायिक जीवों के प्रकार अग्निकायिक जीवों के प्रकार वायुकायिक जीवों के प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों के प्रकार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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