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162 :: तत्त्वार्थसार
23. ज्ञानादि गुणों को मायाचार से छिपाए रखना माया क्रिया है।
24. मिथ्यादृष्टियों के मिथ्यात्वपूर्ण कामों की प्रशंसा करना मिथ्यादर्शन क्रिया है। ऐसी प्रशंसा में वही लग सकता है कि जिसे सत्य धर्म में अभिरुचि न हो। ___25. देशव्रत के घातक' कषायकर्मों का उदय रहने से व्रतों से सर्वथा विमुख रहना अप्रत्याख्यान क्रिया है। प्रत्याख्यान का अर्थ त्याग होता है। विषय त्याग न होकर उलटी आसक्ति होना-यह अप्रत्याख्यान शब्द का अर्थ है। कषाय सभी प्रवृत्तियों के कारण हैं। इन्द्रिय-शब्द से इन्द्रियज्ञान लेना चाहिए। अव्रत शब्द का अर्थ विषयासक्ति है। विषयासक्ति मनोविकार है, इसलिए क्रियाओं से उक्त तीनों ही जुदे कहे गये हैं। क्योंकि, क्रियाएँ जितनी हैं वे सब शरीरावयवों की सकम्प अवस्थाएँ हैं। इन्हीं सकम्पावस्थाओं को कारण-भेदवश अनेक नाम प्राप्त हुए हैं। उदाहरणार्थ, इन्द्रिय का अर्थ इन्द्रियोपयोग है, परन्तु स्पर्शन क्रिया का अर्थ स्पर्शनेन्द्रिय-व्यापार है। बुरे, भले साम्परायिक कर्मबन्धनों के ये कारण हैं।
आस्रव की तरतमता के कारण
तीव्र-मन्द-परिज्ञात-भावेभ्योऽज्ञातभावतः।
वीर्याधिकरणाभ्यं च तद्विशेषं विदुर्जिनाः॥१॥ अर्थ- इन्द्रियादिक साम्पराय कर्म के उनतालीस कारण कहे, परन्तु साम्परायिक कर्मों का फल भोगने वाले संसारी जीवों में अनन्त विचित्रताएँ देखने में आती हैं। क्या वे विचित्रताएँ निष्कारण होती हैं? यदि नहीं तो उनके लिए कौन से कर्म कारण हैं और वे कर्म कैसे बँधते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर उक्त श्लोक में हैं।
वह यों कि, साम्परायिक कर्मबन्ध के कारण जो उनतालीस ऊपर कहे वे ही हैं, परन्तु परिणामों की (1) तीव्रता, (2) मन्दता अनन्त तरह की हो सकती है। बस, उसी से कर्म सामर्थ्य में अनन्त भेद पैदा हो जाते हैं। इसके सिवाय, जो कर्म (3) ज्ञानपूर्वक किये जाते हैं वे दूसरे प्रकार के होते हैं और (4) बिना जाने किये जाते हैं वे और दूसरे प्रकार के होते हैं। (5) शक्ति तथा (6) आश्रय से भी अन्तर पड़ जाता है। शक्ति नाम बल का है। विशेषता के ये छह कारण हुए।
अधिकरण या आश्रय का विस्तारार्थ
तत्राधिकरणं द्वेधा जीवाजीवविभेदतः। त्रिःसंरम्भ-समारम्भारम्भैर्योगैस्तथा त्रिभिः॥10॥ कतादिभिः त्रिभिश्चैव चतर्भिश्च क्रधादिभिः। जीवाधिकरणस्यैते, भेदा अष्टोत्तरं शतम्॥11॥ संयोगौ द्वौ निसर्गास्त्रीन् निक्षेपाणां चतुष्टयम्। निर्वर्तनाद्वयं चाहुर्भेदानित्यपरस्य तु॥12॥
1. देशव्रत के घातक कर्मों को अप्रत्याख्यानावरण कहते हैं।
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