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तृतीय अधिकार :: 151
परमाणुओं के केवल जुड़ने से जो स्कन्ध बनते हैं उनमें जिस प्रकार उपभोग योग्यता नहीं रहती, उसी प्रकार स्थूलता भी नहीं रहती है। क्योंकि, स्थूलता प्राप्त हुए बिना पदार्थ, इन्द्रियों से ग्राह्य नहीं हो सकता है, इसलिए जब कि इन्द्रियाग्राह्यता नहीं होती तो स्थूलता होना भी असम्भव ही समझना चाहिए, कार्यकारी स्कन्ध तथा स्थूलता इन दोनों का अविनाभाव - सम्बन्ध मानना चाहिए। ऐसे स्कन्धों की उत्पत्ति में भेद व संघात इन दोनों की आवश्यकता रहती है, यह बात पहले कह चुके हैं।
जब कि परमाणु सूक्ष्मस्वभाव वाले होते हैं तो परमाणुओं से बननेवाले स्कन्धों में स्थूलता कहाँ से आ जाती है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि स्थूलता यद्यपि मूल धर्म है तो भी अनादि से जिन स्कन्धों
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स्थूलता का पर्याय प्रकट हो रहा है उन्हीं में आकर मिलने वाले परमाणु अपनी प्राथमिक सूक्ष्मता छोड़कर स्थूलता को धारण कर लेते हैं। जिस प्रकार कि कर्मबद्ध जीव में अनादि बन्धन रहने से नवीननवीन पुद्गल बन्ध भी होता रहता है, परन्तु जो जीव एक बार मुक्त हो चुका हो वह फिर बद्ध नहीं होता । इसी प्रकार स्थूल स्कन्ध में से टूट-फूट कर जो एकाध परमाणु जुदा हो जाता है वह फिर स्वयं स्थूल नहीं होता । हाँ, जीव जिस प्रकार फिर कभी बद्ध नहीं होता उस प्रकार परमाणुओं में परस्पर बन्ध होने का निषेध नियत नहीं है । वे फिर भी बद्ध होते हैं और किसी स्थूल में बद्ध हों तो स्वयं स्थूल भी हो जाते हैं, परन्तु स्वयं किसी स्थूल की सहायता के बिना वे स्थूलता को प्राप्त नहीं कर सकते - इतना नियम अवश्य है । इसीलिए असली बन्धक शक्ति पुद्गलों में ही मानी जाती है। जो जीव की बद्ध अवस्था मानी जाती है वह केवल बद्ध होने की योग्यता रहने से है, परन्तु उस जीव का भी बन्धक पुद्गल ही कहा जाता है अर्थात्, सर्वत्र बन्धनकर्ता पुद्गल ही होता है और जीव केवल उसके पराधीन होने से बद्ध हो जाता है। स्वयं जीव बन्धन करने की शक्ति नहीं रखता। नहीं तो, मुक्त होने पर भी फिर बद्ध हो सकता था । यही कारण है कि मुक्त होने पर जीव बध्यमानता रूप शक्ति के रहते हुए भी बद्ध नहीं होता । उस समय उसकी वैभाविकी शक्ति स्वभाव में ही परिणत होती रहती है।
परमाणुओं की बन्धन शक्ति जीव के समान सापेक्ष नहीं है, किन्तु निरपेक्ष ही काम देती है, इसीलिए परमाणु होकर भी पुद्गल परस्पर में बद्ध हो जाते हैं । तो भी स्थूलता प्राप्त होना पराधीन ही है। शुद्ध परमाणुओं के बँधते - बँधते अनन्तानन्त परमाणु भी यदि एकत्र हो गये हों तो वह स्कन्ध सूक्ष्म ही रहता है, इसीलिए सूक्ष्मता पुद्गल का शुद्ध पर्याय माना जाता है और स्थूलता विकारी। इसका उदाहरण, जीव का सम्यक्त्व गुण कर्मबन्धन की दशा में मिथ्यात्व रूप होकर रहता है और सम्यक्त्वघातक कर्म का नाश हो जाने पर स्वभाव हो जाता है एवं सम्यक्त्व प्रकृति रहते समय भी स्वभावमय रहता है, परन्तु किंचित् अशुद्ध रहता है। इसी प्रकार स्थूलता विपरीत पर्याय है और परमाणुगत सूक्ष्मता पूर्ण शुद्ध पर्याय है । कुछ स्कन्धों में भी सूक्ष्मता रहती है, परन्तु वह वेदक सम्यक्त्व के समान किंचित् अशुद्ध सूक्ष्मता माननी चाहिए ।
स्थूलता स्वयं उत्पन्न नहीं होती, क्योंकि वह विकारी पर्याय है । विकारी होने के लिए विजातीय कारणों की अपेक्षा पड़ती है । परन्तु स्थूलता, टूटते - फूटते, सूक्ष्मता में अपने आप परिणत हो जाती है । सूक्ष्मता होने के लिए परसंयोग की गरज नहीं रहती । परमाणु की दशापर्यन्त यही प्रकार है । जैसे-जैसे परमाणुओं के विशिष्ट बन्धनवश एक-एक कार्यकारिणी शक्ति स्कन्धों में प्रकट होती जाती है वैसे
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