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________________ तृतीय अधिकार :: 131 अर्थ-किसी भी पदार्थ में आदि, मध्य, अन्त-ये तीन भेद कम से कम अवश्य हो सकते हैं ऐसी लोगों की समझ है, परन्तु जो अतिसूक्ष्म हो उसमें ये भेद होना असम्भव है। अतिसूक्ष्म कहने का अर्थ इतना ही है कि उसका फिर विभाग नहीं हो सकता है। जिसमें विभाग नहीं हो सकते हों उसके आदि मध्यादि भेद कैसे होंगे? परमाणु भी ऐसा ही होता है। वह अतिसूक्ष्म होता है। किसी स्थूल पदार्थ के टुकड़े होते-होते जो अविभागी टुकड़े तक पहुँच जाता है, उस अवस्था को परमाणु कहते हैं। उसकी सूक्ष्मता का वर्णन यों करते हैं आदिम विभाग करने का यदि प्रयत्न किया जाए तो जो स्वतः सम्पूर्ण ही आदि में आ जाता हो, मध्य विभाग करने पर जो मध्य में सबका सब आ जाता हो और अन्तिम विभाग करने पर अन्त में भी सबका सब आ जाता हो-अर्थात् जो विभागयोग्य ही न हो उसे परमाणु कहते हैं। यह भी अतिसूक्ष्मता का ही कारण है कि वह इन्द्रियगोचर नहीं हो सकता है। वह अतिसूक्ष्म होता है और नित्य भी होता है। पुद्गल की अन्तिम दशा वही है। बहुत से परमाणु मिलने पर ही कार्ययोग्य स्थूल घटपटादि पदार्थ तैयार होते हैं, इसलिए वे परमाणु ही उन सबों के मूल कारण हैं, परन्तु स्कन्धों से ही वे जाने जाते हैं। एक से अधिक परमाणुओं के मिलने पर भी सूक्ष्मता शीघ्र नष्ट नहीं हो पाती है, इसलिए कुछ स्कन्धों का भी सूक्ष्म स्वभाव माना गया है, परन्तु उस सूक्ष्मता का भी कारण परमाणुगत सूक्ष्मता ही है, इसलिए परमाणुओं का सूक्ष्मता स्वभाव ही वास्तविक सूक्ष्मता स्वभाव है। परमाणु जब तक एक स्कन्ध में मिल न चुका हो, तब तक जैसा कुछ रहता है वैसा ही मिलकर छूटने पर भी रहता है। यह बात किसी भी स्कन्ध में दिख नहीं पड़ती है। स्कन्ध एक समय, एक प्रकार का होता है तो दूसरे समय उन्हीं परमाणुओं का होकर भी वह दूसरे प्रकार का हो जाता है। यह बन्धन की विचित्रता है, इसीलिए किसी भी स्कन्ध को नित्य नहीं कह सकते हैं, परन्तु परमाणुओं को उक्त अपेक्षा से नित्य कह सकते हैं। यदि यह अपेक्षा न मानी जाए तो कार्यमय घटपदादिक स्कन्ध तथा परमाणुओं को एक से विशेषण भी लगाये जा सकते हैं अर्थात् परमाणु तथा स्कन्ध में परस्पर अवयवअवयवी रूप सम्बन्ध होता रहता है और छूटता भी रहता है, इसलिए नित्य हैं तो दोनों ही नित्य हैं और अनित्य हैं तो दोनों ही अनित्य हैं; ऐसा मानना पड़ता है। यह सापेक्ष नित्यानित्यपना, द्रव्य लक्षण कहते समय बता चुके हैं और उसका समर्थन भी कर चुके हैं। __परमाणुओं को कार्यरूप घटादिद्रव्यों का जो कारण माना है वह अपेक्षावश माना है। किसी स्कन्ध के फूटने-टूटने पर जो परमाणु व्यक्त होते हैं उन परमाणुओं का कारण वह स्कन्ध है और स्कन्ध बनते समय, उस स्कन्ध का कारण वे परमाणु हैं। इस प्रकार दोनों ही एक दूसरे के कारण होते हैं और दोनों ही एक-दूसरे के कार्य हैं, परन्तु शुद्ध पुद्गल द्रव्य का स्वरूप देखना चाहें तो स्कन्ध में नहीं रहता, वह परमाणुओं में रहता है। स्कन्ध की अवस्था सदा अशुद्ध होती है, इसीलिए मूल अवस्था की तरफ विचार करने से वास्तविक कारण परमाणु द्रव्य ही जान पड़ता है। इसी बात को यों भी कह सकते हैं कि स्कन्ध रूप अशुद्धता का आश्रय तथा उपादान कारण परमाणु ही है। वह अशुद्धता जब नष्ट हो जाती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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