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________________ 120 :: तत्त्वार्थसार एक आकाश-प्रदेश में अनेक वस्तु अवगाहन-सामर्थ्यात् सूक्ष्मत्वपरिणामिनः । तिष्ठन्त्येक प्रदेशेऽपि बहवोऽपि हि पुद्गलाः ॥ 26 ॥ अर्थ- - आकाश में यह गुण सर्वत्र और सदा विद्यमान ही है कि जो जहाँ चाहे वह वहाँ अवस्था कर ले। अब रही यह बात कि घटपटादिक सब पदार्थ एक ही आकाश-स्थान में क्यों नहीं समाते हैं ? इसका उत्तर यह है कि अवकाश देनेवाले आकाश का सामर्थ्य जो अवकाश देना था वह तो कभी कम नहीं होता। हाँ, जहाँ स्थूल पदार्थ एक - एकत्र रहता है, दूसरा कोई वहाँ आना चाहे तो, प्रथम पदार्थ उसे रोकता है। यह हुई पदार्थों की परस्पर की लड़ाई, परन्तु वह भी केवल स्थूल पदार्थों की परस्पर लड़ाई है। आकाश तब भी किसी को आने से नहीं रोकता। पदार्थों में भी जो परस्पर अवगाहन न होने देने का विरोध है वह मात्र स्थूलों में है, इसलिए यदि अवगाहन लेनेवाला पदार्थ सूक्ष्म हुआ तो अवरोधक शक्ति उसमें भी नहीं रहती है। इस प्रकार आकाश के एक-एक प्रदेश में यदि बहुतेरे पुद्गल रहें तो रह सकते हैं । अवगाहनत्व का दृष्टान्त एकापवरकेऽनेकप्रकाश-स्थिति-दर्शनात् । न च क्षेत्रविभागः स्यान्न चैक्यमवगाहिनाम् ॥ 27 ॥ अर्थ- - एक घर में एक दीपक का प्रकाश सर्वत्र व्याप्त हो जाने पर भी दूसरे, तीसरे दीपकों का प्रकाश समा जाता है। प्रकाश भी पुद्गल है। प्रत्येक दीप - प्रकाश का स्थान जुदा-जुदा विभक्त नहीं रहता और अवकाश लेनेवाले प्रकाश - पुद्गल एक भी नहीं हो जाते हैं। प्रकाश अनेकों हैं और क्षेत्र यहाँ एक ही है। इसी प्रकार अन्यत्र भी एक- एक क्षेत्र में अनेक पुद्गल समा जाना सम्भव है 1 उपसंहार अल्पेऽधिकरणे द्रव्यं महीयोनावतिष्ठते । इदं न क्षमते युक्तिं दुःशिक्षितकृतं वचः ॥28॥ अर्थ- 'छोटे आधार में बड़ा समा नहीं सकता' ऐसी शंका ठीक नहीं है, यह शंका केवल अज्ञानवश होती है। एक क्षेत्र में अनेक वस्तु समानेवाला दूसरा दृष्टान्त Jain Educationa International अल्पक्षेत्रे स्थितिर्दृष्टा प्रचयस्य विशेषतः । पुद्गलानां बहूनां हि करीष- पटलादिषु ॥ 29 ॥ अर्थ - पुद्गल के परमाणुओं का परस्पर सम्बन्ध अनेक प्रकार होता है । उस बन्धन की ही यह महिमा है कि बहुत से पुद्गल भी छोटी-सी जगह में समा जाते हैं। इसका उदाहरण करीष-पटल हैं, For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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