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________________ तृतीय अधिकार :: 119 थोड़ी-सी राख डाली जाए तो वह भी समा जाती है। जिस बर्तन में पानी भरा होता है उसमें एक प्रदेश भी पानी से खाली नहीं है, तो भी उसमें कुछ शक्कर और ऊपर से राख क्यों आ जाती है ? इसका कारण यही कहना पड़ता है कि पानी में उन चीजों को पुनः स्थान देने की शक्ति है। जो पत्थर आदि कुछ ऐसी स्थूल चीजें हैं जो कि अपनी जगह में दूसरे स्थूल पदार्थों को नहीं आने देती उनमें स्थूलता कारण है। बस, इसीलिए असंख्यात प्रदेशी छोटे आकाश के एक-एक प्रदेश में अनन्त-अनन्त पुद्गल तथा शेष द्रव्य आ जाते हैं। विशेष : जैसे कोई एक व्यक्ति जंगल में जाकर एक हजार प्रकार की वनस्पति के एक-एक पत्ते लाकर काढ़ा (उकाली) बनाये, पुनः सुई की नोंक बराबर काढ़े में एक हजार प्रकार की वनस्पति का सत्त्व है, उसी प्रकार पाँच हजार, दश हजार, पचास हजार, एक लाख प्रकार की वनस्पति के पत्तों के काढ़े बनाकर सुई के नोंक बराबर काढ़े में पाँच, दश, पचास हजार एवं लाख प्रकार की वनस्पति का सत्त्व पाया जाता है। उस सुई के नोंक बराबर बूंद का न आकार बढ़ता है न वजन बढ़ता है, ऐसे ही आकाश के एक प्रदेश में या आत्मा के एक प्रदेश पर अनन्तानन्त परमाणु या कर्म समा जाते हैं। इसका कारण यह है कि किसी भी शुद्ध द्रव्य में किसी को बाधा देने की योग्यता नहीं रहती है। जितने पदार्थ एक दूसरे को बाधा देते हैं वे सब अशुद्ध द्रव्य हैं। बाधा देनेवाला भी अशुद्ध ही होता है और जो बाधा सहता है वह भी अशुद्ध ही होता है। हाँ, बहुत-सी चीजें अशुद्ध होकर भी बाधा नहीं करती हैं. जो बाधा करती हैं वे सब अशद्ध ही होती हैं यह इकतरफी व्याप्ति है। जो बाधा नहीं करती हैं उनमें यों कहना चाहिए कि अभी तक और प्रकार की अशुद्धताएँ उत्पन्न हो जाने पर भी बाधाकरण योग्य अशुद्धता हो सकती हैं, परन्तु वे सभी स्थूलताएँ बाधक नहीं होती हैं, इसलिए स्थूलता के थोड़े से प्रकार ही बाधक मानने चाहिए। देखिए, पानी शक्कर आदि की भाँति अग्नि, हवा इत्यादि में भी परस्पर बाधा करने की योग्यता नहीं रहती है। हवा चाहे जिस के भीतर समा जाती है। अग्नि एक कठोर लोह के पिंड में भी प्रवेश कर जाती है। ___अब यह देखिए कि जो अनेकों परमाणु परस्पर एक ही जगह में आकर ठहर जाते हैं वे किस प्रकार के होते हैं ? वे अति शुद्ध होते हैं। जो अशुद्ध स्कन्धों में सहस्रशः वैभाविक स्वभाव उत्पन्न हो जाते हैं वे धीरे-धीरे, जैसा वह स्कन्ध फूटता-टूटता हुआ छोटा होता जाता है वैसे ही, कम होते जाते हैं। अतिस्थूल एक कोई स्कन्ध जब एक बार फूटता है तभी कम से कम उसका एक वैभाविक भी नष्ट हो जाता है। ऐसे, स्कन्ध के फूटते-फूटते वैभाविक पर्याय नष्ट होते जाते हैं। इस प्रकार अन्त में जब परमाणु-अवस्था हो जाती है तब एक भी वैभाविक पर्याय उसमें नहीं रहता है। बस, इसीलिए परमाणु किसी दूसरे का बाधक भी नहीं हो सकता है और दूसरों से बाध्य भी नहीं हो सकता है। स्थूलता का साधारण लक्षण यह है कि जो इन्द्रियग्राह्य हो वह स्थूल मानना चाहिए। शेष सब सूक्ष्म मानने चाहिए। यह स्थूल-सूक्ष्म की मध्यगत सीमा हुई। परस्पर में जो स्थूल, सूक्ष्मों के और भी अनेक भेद हो सकते हैं वे आपेक्षिक मानने चाहिए। जैसे आँवला, बेल से सूक्ष्म है और झरबेर से स्थूल है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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