SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय अधिकार :: 111 के शाश्वत अपृथक् सम्बन्ध से जो मिश्रित कल्पना होती है उसी को द्रव्य कहते हैं। अयुत सम्बन्ध का 'तादात्म्य सम्बन्ध' ऐसा अर्थ होता है। एक-दूसरे का परस्पर में जो तन्मय होकर रहना है उसी को तादात्म्य कहते हैं। पर्याय व गुणों में परस्पर यही सम्बन्ध होता है, इसीलिए वे कभी जुदे-जुदे नहीं होते। केवल सामान्य विशेषता के कारण उनका भेद समझ में आता है। इसीलिए गुण-पर्यायों को परस्पर में केवल सम्बन्धी न मानकर कथंचित् अभिन्न भी कहते हैं। गुण-पर्याय शब्दों का अर्थ सामान्यमन्वयोत्सर्गौ शब्दाः स्युर्गुणवाचकाः। व्यतिरेको विशेषश्च भेदः पर्यायवाचकाः ॥10॥ अर्थ-सामान्य, अन्वय, अनुवृत्ति, उत्सर्ग, विधि, शक्ति इत्यादि शब्दों का अर्थ गुण होता है। व्यतिरेक, भेद, व्यावृत्ति, परिणाम इत्यादि शब्दों का अर्थ पर्याय होता है। द्रव्य से गुणों का अभेद गणैर्विना न च द्रव्यं विना द्रव्याच्च नो गणाः। द्रव्यस्य च गुणानां च तस्मादव्यतिरिक्तता॥11॥ अर्थ-गुणों के बिना द्रव्य नहीं हो सकता और द्रव्य के बिना एकाकी गुण नहीं रहते, इसलिए द्रव्य व गुणों को परस्पर अभिन्न माना जाता है। पर्याय-द्रव्य का अभेद न पर्यायाद्विना द्रव्यं विना द्रव्यान्न पर्ययः। वदन्त्यनन्यभूतत्वं द्वयोरपि महर्षयः॥12॥ अर्थ- पर्याय के बिना द्रव्य नहीं दिखता और द्रव्य के बिना पर्याय भी नहीं हो सकता है। इसलिए आचार्य द्रव्य और पर्याय इन दोनों को भिन्न-भिन्न न मानकर अनन्यभूत मानते हैं। उत्पाद-व्यय की सत्यार्थता न च नाशोऽस्ति भावस्य, न चाभावस्य सम्भवः । भावाः कुर्युर्व्ययोत्पादौ पर्यायेषु गुणेषु च ॥ 13॥ अर्थ-सत् वस्तु' का अभाव होना असम्भव है और असत् का सद्भाव होना असम्भव है, इसलिए व्यय का अर्थ 'नाश' तथा उत्पाद शब्द का अर्थ 'असत् का प्रादुर्भाव' ऐसा नहीं करना चाहिए, किन्तु ऐसा अर्थ मानना चाहिए कि पदार्थ अपने पर्याय तथा गणों में व्ययोत्पाद करते हैं। इसी को भत्वा-भवन 1. नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः। इति स्मृतिकाराः । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy