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________________ द्वितीय अधिकार :: 89 व समुद्र हैं। यद्यपि उनका प्रत्यक्ष होना कठिन है, परन्तु जिनेन्द्र भगवान के उपदेश से भव्य जीवों को वे मानने चाहिए। जम्बूद्वीप के सात क्षेत्र सप्त क्षेत्राणि भरतः तथा हैमवतो हरिः। विदेहो रम्यकश्चैव हैरण्यवत एव च। ऐरावतश्च तिष्ठन्ति जम्बूद्वीपे यथाक्रमम्॥ 193 ॥ (षट्पदी) __ अर्थ-जम्बूद्वीप सबके मध्य का द्वीप है, इसलिए जम्बूद्वीप का वर्णन करने से बाकी द्वीपों का वर्णन सुगमता से होगा। जम्बूद्वीप की दक्षिण से उत्तर बाजू तक सात क्षेत्र हैं। 1. भरत, 2. हैमवत, 3. हरि, 4. विदेह, 5. रम्यक, 6. हैरण्यवत, और 7. ऐरावत-ये उन क्षेत्रों के नाम हैं। जम्बूद्वीप के कुलाचल पार्वेषु मणिभिश्चित्रा ऊर्ध्वाधः तुल्यविस्तराः। तद्विभागकराः षट् स्युः शैला: पूर्वापरायताः॥ 194॥ हिमवान् महाहिमवान् निषधो नीलरुक्मिणौ। शिखरी चेति सञ्चिन्त्या एते वर्षधराद्रयः ॥ 195॥ कनकार्जुनकल्याणवैडूर्यार्जुनकाञ्चनैः। यथाक्रमेण निर्वृताः' चान्त्यास्ते षण्महीधराः॥ 196॥ अर्थ-ऊपर कहे हुए सातों क्षेत्रों का विभाग छह पर्वतों द्वारा होता है। 1. हिमवान्, 2. महाहिमवान्, 3. निषध, 4. नील, 5. रुक्मी, और 6. शिखरी-ये उन पर्वतों के नाम हैं। वर्ष या क्षेत्र का एक ही अर्थ है। सीमाओं के विभाग करनेवाले ये छहों पर्वत हैं, इसलिए इन्हें वर्षधर कहते हैं। नीचे ऊपर तथा मध्य में इनकी चौड़ाई एक सी है। पार्श्वभागों में प्रत्येक पर्वत की दोनों बाजू नाना प्रकार के रत्न-मणियों से घिरी हुई है। प्रत्येक पर्वत पूर्व दिशा में पश्चिम की तरफ लम्बे पड़े हुए हैं। इतने लम्बे हैं कि पूर्वपश्चिम के समुद्रों तक पहुँचे हुए हैं। प्रथम पर्वत स्वर्ण का है। दूसरा चाँदी का है। तीसरा ताँबे के समान रंगवाले स्वर्ण का है। चौथा वैडूर्य का नीलमणिमय है। पाँचवाँ चाँदी का है। छठा स्वर्ण का है। कुलाचलों के सरोवरों का कथन पद्मस्तथा महापद्मस्तिगिञ्छः केशरी तथा। पुण्डरीको महान् क्षुद्रो हृदा वर्षधराद्रिषु॥ 197॥ 1. कुछ लोगों की यह समझ है कि हिमवान् आदि पर्वत सोने-चाँदी आदि के बने हुए नहीं हैं। सादृश्य अर्थ में भी मयट् प्रत्यय होता है। "विकारागमसादृश्यानि मयडर्थाः" ऐसा कहा भी है, परन्तु ऊपर के श्लोक में बने हुए, कहने से सोने आदि के बने हुए ही मानना चाहिए। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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