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द्वितीय अधिकार :: 83 अर्थ-असंज्ञी पर्याप्तक तिर्यंचों का जन्म नारक, देव व तिर्यंचों में से किसी में भी हो सकता है एवं कभी-कभी वे मनुष्यों में भी उत्पन्न हो सकते हैं, परन्तु सर्वदा ऐसा नहीं होता। भोगभूमि में कौन उपजते हैं?
संख्यातीतायुषां मर्त्यतिरश्चां तेभ्य एव तु।
संख्यातवर्षजीविभ्यः, संज्ञिभ्यो जन्म संस्मृतम्॥ 159॥ ___ अर्थ-असंख्यात वर्षवाले भोगभूमिज मनुष्य व तिर्यंचों में जन्म उन्हीं मनुष्य-तिर्यंचों का होता है जो कि संज्ञी पर्याप्तक संख्यात वर्ष वाले कर्मभूमिज हों। पर्याप्तक या असंज्ञी तिर्यंचों का तथा सम्मूर्च्छन मनुष्यों का भोगभूमि में जन्म नहीं होता। देव, नारक भी वहाँ नहीं उत्पन्न हो सकते हैं।
भोगभूमि के जीव कहाँ उपजते हैं?
संख्यातीतायषां ननं देवेष्वेवास्ति संक्रमः।
निसर्गेण भवेत्तेषां यतो मन्दकषायता॥ 160॥ अर्थ-असंख्यात वर्षवाले भोगभूमिज मनुष्य-तिर्यंचों का जन्म देवों में ही होता है, क्योंकि वहाँ स्वाभाविक मन्दकषाय रहती है, जिससे देवायु का ही बन्ध होता है। शलाकापुरुषों का जन्मनिश्चय
शलाकापुरुषा नैव, सन्त्यनन्तरजन्मनि।
तिर्यंचो मानुषाश्चैव भाज्याः सिद्धगतौ तु ते॥ 161॥ अर्थ-शलाकापुरुष उन्हें कहते हैं जो कि चक्रवर्त्यादि पदों के धारक हों। ऐसे पुरुष मरकर सीधे तिर्यंच भी नहीं होते और मनुष्य भी नहीं होते हैं, वे प्राय तो सिद्ध होते हैं, परन्तु यह भी नियम नहीं है। जो तद्भव सिद्ध नहीं होते वे स्वर्ग या नरक में जाते हैं । चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ नारायण, नौ बलभद्र, नौ प्रतिनारायण-ये त्रेसठ 'शलाकापुरुष' कहलाते हैं। कर्मभूमि के मिथ्यादृष्टि जीवों की उत्पत्ति
ये मिथ्यादृष्टयो जीवाः संज्ञिनोऽसंज्ञिनोऽथवा।
व्यन्तरास्ते प्रजायन्ते तथा भवनवासिनः॥ 162॥ अर्थ-जो संज्ञी तथा असंज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव मरते हैं वे व्यन्तर देवों में तथा भवनवासी देवों में उपजते हैं। भोगभूमि के मिथ्यादृष्टियों की और तापसों की उत्पत्ति
संख्यातीतायुषो मर्त्याः तिर्यंचाप्यसदृशः। उत्कृष्टाः तापसाश्चैव यान्ति ज्योतिष्कदेवताम्॥ 163 ॥
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