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76 :: तत्त्वार्थसार
दिनान्येकोनपञ्चाशत् त्र्यक्षाणां त्रीणि तेजसः।
षण्मासाश्चतुरक्षाणां भवत्यायुः प्रकर्षतः ॥ 119॥ अर्थ-त्रीन्द्रिय जीवों की आयु का प्रमाण उनचास दिन, तेज:कायिक जीवों का तीन दिन, चतुरिन्द्रियों जीवों का छह महीना-यह उत्कृष्ट आयु-प्रमाण है।
नवायुः परिसर्पाणां पूर्वांगाणि प्रकर्षतः।
द्वयक्षाणां द्वादशाब्दानि जीवितं स्यात्प्रकर्षतः॥ 120॥ ___ अर्थ–परिसर्प जाति के सर्पो की उत्कृट आयु नौ पूर्वांगप्रमाण होती है। द्वीन्द्रियों का उत्कृष्ट जीवन बारह वर्ष का है। असंज्ञी पंचेन्द्रिय, कर्मभूमि मनुष्य, तिर्यंचों की अत्कृष्ट आयु
असंज्ञिनस्तथा मत्स्याः कर्मभूजाश्चतुष्पदाः।
मनुष्याश्चैव जीवन्ति पूर्वकोटि प्रकर्षतः॥ 121॥ ___ अर्थ-कर्मभूमि के पशु, असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मच्छ, कर्मभूमि के मनुष्य एक पूर्वकोटि पर्यंत उत्कृष्ट जीते हैं। भोगभूमिज एवं कुभोगभूमिज मनुष्य, तिर्यंचों की उत्कृष्ट आयु
एकं द्वे त्रीणि पल्यानि नृ-तिरश्चां यथाक्रमम्। जघन्य-मध्यमोत्कृष्टभोगभूमिषु जीवितम्॥
कुभोगभूमिजानां तु पल्यमेकं हि जीवितम्॥ 122 ॥ (षट्पदम्) अर्थ-सुभोग भूमियों में से जघन्य में एक पल्य, मध्यम में दो पल्य, तथा उत्कृष्ट भोगभूमि में तीन पल्य का उत्कृष्ट जीवन रहता है। कुभोगभूमिज जीवों का एक पल्य का जीवन होता है। नारकियों की उत्कृष्ट एवं जघन्य आयु
एकं त्रीणि तथा सप्त दश सप्तदशेति च। द्वाविंशतिस्त्रयस्त्रिंशद् घर्मादिषु यथाक्रमम्॥ 123 ॥ स्यात् सागरोपमाण्यायु रकाणां प्रकर्षतः। दश वर्षसहस्त्राणि, धर्मायां तु जघन्यतः ॥ 124॥ वंशादिषु तु तान्येकं त्रीणि सप्त तथा दश।
तथा सप्तदश द्वयग्रा विंशतिश्च यथोत्तरम्॥ 125 ॥ अर्थ-1. घर्मा, 2. वंशा, 3. मेघा, 4. अंजना, 5. अरिष्टा, 6. मघवी, 7. माधवी-ये सात नरकों के नाम हैं। इनमें रहनेवाले नारकों की उत्कृष्ट आयु क्रमश: एक सागर, तीन सागर, सात सागर, दश सागर, सत्रह सागर, बाईस सागर तथा तेतीस सागर तक होती है । जघन्य आयु घर्मा नरक में दश हजार वर्ष मात्र होती है। वंशादि दूसरे-तीसरे आदि नरकों में जघन्य का प्रमाण इस प्रकार है-दूसरे में एक सागर, तीसरे में तीन सागर, चौथे में सात सागर, पाँचवें में दश सागर, छठे में सत्रह सागर तथा सातवें नरक में बाईस सागर।
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