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________________ ७ अने शक्तिना शंकाशीलपणाने ली ए कार्य पडतुं मूकवामां आव्यं हतं. परंतु केटलाक विद्वान सन्मित्रानां अभिप्राय अने सलाही उत्तेजित थइ ए कार्य पूरी करवाने अमे शक्तिवान थया छीए, तेने अमे श्री वीर प्रभुना अनुग्रहनुंज फळ मानीए छीए. स्त्री पुरुष, वृद्ध वगेरे सौ कोइ तनो एक सरखी रीते लाभ लइ शके ए उमदा उद्देशथी ते वखतना देश काळने अनुसरीने जेम सूत्रो संस्कृतने बदले माकृत भाषामा लखायां हतां तेज धोरणे हालनो देश काळ ध्यानमां लइ सरळ गूजराती भाषामा तेनुं भाषान्तर करवाने असे मेराया डीए, अने तेनो लाभ गूजराती भाषा जाणनार सौ कोइ ले एज अमारी इच्छा एज अमारी उमेद अन एज अमारी प्रार्थना छे. भाषान्तर बीज तो साथ मेळवी, युवा वधारो करवामां शंका लागे त्यां विद्वान् मुनीराजोनी सलाह लेवामां, अने अवकाश मळ्यो त्यां सुधी फुटनोटो लखनामां, मारा वनित शिष्य झवेरी दुर्लभजी त्रीभुवनदास मोरवीवाळाए मने सारी मदद करी छे. आ स्तुत्य श्रम वाचको प्रत्यक्ष जोइ शकशे. ए उपयोगी साधनानुं स्मरण आ पवित्र पुस्तक साथे जळवाइ रहेशे. आवी धार्मिक उन्नति दलालीनां कार्यो माटे, आ भाइ विशेष उत्साही बनी रहे ए मारी अंतःकरणनी आशीश छे. आ पुस्तकनी प्रसिद्धि, राजकोट मिटिंग प्रेसना स्ववमीं मालिक भाइ मोहनलाल दामोदरना उत्साह ने आभारी छे. जेणे साहस करी, श्रावकोना उत्तेजननी आशा उपर आ काम माथे लइ यत्ना पूर्वक छापी, एक उपयोगी पुस्तक श्री संघनी सेवामां रजुक छे. Jain Educationa International वीर संवत २४३५. भाद्रपद शुद्ध ६० } For Personal and Private Use Only भवदीय नागरदास मूळजी ध्रुव, भाषान्तर कर्त्ता. www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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