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________________ ११. उ. अ. अवसोहिय कंटयापहं उत्तिन्नो सिपहं महालय । गछसि मग्गविसोहिया समयं गोयममापमायए ॥ ३२ ॥ अबले जहभारवाह मामग्गेविसमे बगाहिया। पछापछाणु तावए समयं गोयममापम्भाय ॥ ३३ ॥ तिन्नोहिसि अन्न महं किंपुण चिठसितीरमागओ । अभितुरपारंगमित्त समयं गोयममापमायए ||३४|| अकलेवर सेणिमुस्सिया सिद्धिं गोयमलोयं गछसि । खेमंचसिवंअणुत्तरं समयं गोयममापमायए ||३५|| ७० जे मार्गमांथी [ पाखंड रुपी ] कंटक दूर करेला छे एवो (सम्यकरूपी ) महा मार्ग तने प्राप्त थयेलो छे, माटे हे गौतम! मुक्ति मार्ग विषे चाल्यो जा अने कदि प्रमाद करीश नहि. (३२). * निर्वळ भार वाहकनी माफक तुं विषम मार्गे वहीश नहि; नहि तो तने पाछळी पश्चाताप थशे. माटे हे गौतम! कदि प्रमाद करीश नहि. (३३). हे गौतम ! तुं संसार २ समुद्र तरी गयो छे, हवे कांठे आवीने शा माटे अटकी बेसेछे ? त्वराधी भव पार उतरी जा अने कदि प्रमाद करीश नहि. (३४) क्षपक श्रेणीने विषे संयमथी उत्तरोत्तर चढीने अंते तुं सिद्ध लोकने विषे पहोंचीश४. ए सर्वोत्तम मुक्ति क्षेम कल्याणनी करणहार अने उपद्रव रहित छे, माटे हे गौतम कदि प्रमाद करीश नहि. [३५]. * जेम कोइ भार वाहक सुवर्णादि धन तो बोजो माथे लइने विषम मार्गे जतो होय अने घर नजीकमां होवा छतां ते बोजो कंटाळीने फेंक दे, अने पछीथी जेम तेने पश्चाताप थाय, तेम पंच महाव्रतनो भार युवावस्थारुपी विषम मार्गमां वहन कर्या छतां, पाछळथी ते फेंकी देवाथी (भंग करवाथी ) तने पेला भार वाहकनी माफक पश्चाताप थशे एवो भावार्थ छे. २. Uneven road. ३. अकलेवर श्रेणि. ४. प्रो. जेकोबी आ माटे नीचेना शब्द वापरे छे :- " You have crossed the great ocean; why do you halt so near the shore? make haste to get on the other side." Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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