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________________ उ.अ. ०.०००००.००० ०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० | एयम; निसामित्ता हेऊ करण चोईओ। तओ ननी रायरिसी देविंदो इण मञ्चमी ॥ ३७॥ जइताविउले जन्ने भोइत्ता समणमाहणे । दच्चा भोच्चा य जि य तओ गछति खत्तिय॥३८॥ एयन, निगमित्ता हेऊ कारण चोईओ। तओ नभी रायश्सिी देविंदं इण मब्रवी ॥ ३१ ॥ जो सहस्सं सहस्सागं मामाले गदए । तत्सावि संजमोसओ अदितस्तवि किंचणं ॥ ४० ॥ एयमर्छ नि सामित्ता हेऊ कारण चोईओ । तानी रायरिसी देविदो इण मब्बबी ॥४१॥ घरासमंचइत्ताणं अन्नपच्छेसिआसमं । इहेवपोसहरओ भवाहिमणुया व ॥४२॥ एयमठं निसामित्ता हेऊ कारण चोईओ। तओ नमी रायरिसी देविंद इण मब्बी ॥४३॥ मामाते उ जो बाले कुतगणंतु मुंजए | नसोसुयख्खाय धम्मरस कलं अग्धइ सोला॥४४॥ ए सांभळीने देवन्द्र बोला । गाथा ११मी प्रमाणे (३७). 'हे क्षत्रिय! महा यज्ञा कर; श्रमण-ब्राह्मणने जमाड, सुवर्णादिनां दान दे, तुं पत भोग भोगव, अने होम हवन कर. त्यार पछी दिक्ष थे जाज. (३८). ए सांभळीने नामे राजर्षि बोल्पा (गाथा ८मी प्रमाण]. [३९]. ' क इ माणस प्रति मासे दश लाख गायोनां दान दे, तथापि साधु पुरुषो जेभो कांइ दान देता नथी तेमनो संयम ए दान करता पण श्रेष्ठ छे. ४०]. ए सांभळीने देवेन्द्र बोल्या. [गाथा ११मी प्रमाणे ४१]. 'हे राजन! *घोर आश्रम (ग्रहस्थाश्रम) छोडो तुं अन्य आश्रममा दाखल थवा इच्छे छे; पण घामा रहीनन पो था करीने संताप मान.४२]. ए सांभळीने नमि राजर्षि बाल्या (गाथा ८मी माणे) [४३]. कोइ अज्ञान माण म. खमणने पारणे मात्र कुशाग्र (दर्भनी अणी उपर रहे एटलो ) आहार लइने संतोष माने, तोपण तेना तपर्नु फळ श्री भगवते भाखला चारित्ररुप धर्मना सोळमा भागना फळने पण पहोंचे नहि.[४४]. * गृहस्थाश्रमने अंगे घणा मुश्कल आ हावाथा तेन घोर-भयंकर कहेल छ, पण का रोना अभिप्राय मुजब आ शब्द नमि राजाना मुखमा विशेष शोभत. Jain Education Intematonal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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