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________________ उ.. विजाहत्तुपुत्रसंजोगं नसिणेहं कहिंचिकुव्वेज्जा । असिणेह सिणेह करहिं दोसपओसेहिं मुच्चएभिख्खू ॥२॥ ततोनाण सणसमग्गेहियनिस्तेसायसव्वजीवाणं। तेति विमोख्खगठाए भासई मुणिवरोविगयमोहो ॥३॥ सव्वं गंथं कलहंच हा विप्पजहे तहाविहं भिख्खू । सव्वेसु काम जाएसु पासमाणो नलिप्पई ताई ॥ ४ ॥ भोगामिस दोस विसन्ने हिय निस्सेस बुद्धि, वुच्चथ्थे । बालेय मंदिए मूढे बज्जई मछिया व खेलमि ॥ ५॥ दुपरिच्चया इमे कामा नो सुजहा अधीर पुरिसेहिं । अहसंति सुव्वया साहू जे तरंति अतरं वणियावा ॥ ६ ॥ समणा मु एगे वयमाणा पाणवहमिया अयाणंता । मंदा निरयंगछंति बालापावियाहिं दिठीहिं ॥ ७ ॥ 000000 500०००००००००० ___ पूर्व संबंध छांडीने कोइ वस्तु उपर मोह न कर, पोताना उपर मोह राखनार उपर पण जे साधु मोह न राखे, ते आ लोक खथी छूटे. २]. ते मुनिवर ( कपिल केवळी ) जे पोते मोह रहित छे अने ज्ञान दर्शने करी सहित छ, ते सर्व : जीवोर्नु हित अने मोक्ष इच्छी, कर्म बन्ध टाळवाने कहे छे. (३). [आत्माना] सर्व बंधन, क्रोधादिक प्रकारना कर्म बन्धना हेतुओ साधुए छोडी देवा जोइए. विषय [शब्द, रुप, रस, गंध अने स्पर्श जाणवा छतां, तेमां तेण लुब्ध थवं नहि. (४). जेनी बुद्धि मंद, मूढ, निच्च कर्म करनारी अने आत्म हित करनार मोक्षथी विमुख छ, ते धर्मने विष आळस करे छ, निश्च कर्म करे छे अने 8 माखी जेम श्लेष्ममां बंधाइ जाय छ तेम संसारमा बंधाइ रहे छ. (५). ए काम भोग छांडवाचें कार्य कठिन छ कायर पुरुषो ए कामभोग सेहेलाइथी छडी शकता नथी, पण व्यापारी (वाणी) जेम वहाणथी समुद्र तरे छे, तेम साधु पुरुष संसार समुद्र 18| तरी जाय छे. (६). जो के पोते पशुनी माफक अज्ञानताथी जीव हत्या करता होय, तो पण केटलाक परतीथि एम कहे छे के अमे श्रमण-साधु छीए; आवा विवेकहीन पाप दृष्टिवाळा मनुष्य मिथ्यात्वे करी न जाय छे. (७). ००००००००००००००००००००००००००००० Jain Education Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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