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________________ उ.अ. चीराजिणं न गिणिणं जडी संघाडी मुंडिणं । एयाणिविन तायंति दुस्तीलं परिवागयं ॥ २१ ॥ पिंडोलएव दुस्सीले नरगाओ न मुच्चइ । भिख्खाएवा गिहथ्थेवा सुब्बए कम्मई दिव्वं ॥ २२ ॥ आगारि सामा इयंगाई सढ़िकाएण फासए । पोसहं दुहओ पख्खं एगराइं न हावए ॥ २३ ॥ चीर, वल्कल, अजाचर्म धारण करवाथी, या तो नग्न रहेबाथी, जटा राखवाथी, कथा धारण करवाथी, माधुं मुंडावाथी अने एवां एवां बाह्य-आचार-निशानो ग्रहण करवाथी कांइ दुराचारी कुमागी (साधु ) पातान दुर्गतिथी बचावी शकता नथी. (२१). दुःशील भिक्षा मागीने आजीविका करे पण अनाचार सेवे अने पाप कर्म व नहि तो ते नरकथी छुटे नहि; पण पवित्र वर्तन राखनार पोतानां वृत रुडी रीते पाळनार] साधु होय के संसारी होय तो पण स्वर्ग जाय छे.१(२२), श्रद्धावंत श्रावके सामायिकना 8 अंग कायाये करीने पाळवा जाइए. शुक्ल अने कृष्ण पक्षमा आठम, पाखी वगेरेना शुद्ध भावे पोषा२ करवा जोइए. कोई ते करवानुं चूकवू न जोइए 3. (२३), १. संसारमा रहीने औहिक अने आमुष्मिक-आ भव परभवतुं-श्रेय साधवानी इच्छावाळाए आ शब्दो सोनेरी अक्षरे लखी। राखवा जोइए. A pions man, whether monk or householder, ascends to heaven. " २. पोषह वृत-18 । आत्माने पोषवो संसारी खटपटथी अलग रही, सर्व व्यापार, सर्व आहार | पाणी, मुखवास, मेवो वीगेरे ] अब्रह्म, नोकर चाकर वीरेनी सेवा-आ बधुं एक दीवस अने एक रात्रीने माटे त्यागी आश्रयनो रोध करी संघरमा प्रवर्त. शान्त मने ज्ञान, ध्यानमां 1 दीवस निर्गमन करवो. बुद्ध धर्मीओमां पण आq वृत्त छे जे 'उपोसथ' ( Uposatha ) कहेवाय छे. ३. मूळ पाठमां । 'एमराई' शब्द छे जेनो शब्दार्थ “ए. के रात्रीये पण पोसहनी हानी न करे" एप भाषाकार लाखे छे. जेनो भावार्थ ए होइ शके छे के अष्टमी, पख्खीना पोषा कोइ दीवस चुकवा नहि. दीवस दरम्यान अवकाश न म तो देसावगासीक करवा. ००००००८ Jain Education Intematonal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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