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________________ उ. अ. 00001 Iel कालिया जे अणागया । को जाणइ परेलोए अधिथवा नचित्र | पुणो ॥ ६ ॥ जणेणसधि होख्खामि इइ बाले पगझइ । कामा भोगाणु राएणं केलंसं पडिवज्जइ ॥ ७ ॥ तओ से दंडं सब्बे गारिसु थावरे । अठ्ठाय अणकार या ग्रामं विहिंसइ || ८ || हिंसे बाले मुसाबाई माइल्ले पिसणे, तरा । गारोहिय सुरं मंसं सेय मेयं मन्नई ॥ ९ ॥ कायासा वयसा मध्य इथिसु । दुहओ म गोव्व मट्टियं ॥ ० ॥ 'ए काम भोग अत्यारे मारा हाथमांज छे, पण भविष्यनां सुख तो अनि पुरुषना सकाम र मरण [ पंडित मरण] विषे [६]. एवो लंपट बडाइ करे छे के, ‘जेवी गति बीजानी थशे एत्री मारी पण थरों अरोने घश राखी शके छे तेवा पंडि अंते क्लेश [ दुःख ] पामे छे. [७]. आवी अज्ञानताथी ए मूर्ख माणस त्रस अने स्थानं मरण सघळा साधुने तेमज सघळा ग्रहस्थ कार्यने अर्थे धगा जीवन निरर्थक वध करे छे. [2]. एवो मूर्ख माणस हिंसा करे छे, र अति विषम छे. [१९]. कोइ कोइ पारकी निंदा करे छे, उगबाजी रमे छे, मद्य मांस सेवे छे, अने एम माने छे के आ वधुं हुं सघळा संसारी करतां संयममा उत्कृष्ट मी खाय छे, माटीमा रहे छ अने अंते माटीमांज सुकाइने मरे छे तेम कार्ये अंन वच go माणस, राग द्वेष करीने बने प्रकारे [ मनर्थ अने कायाथी ] पाप बांधे हे. २ (१०). १. ' आ भव मीठो तो पर भव कोण दीठो ' - एवो अज्ञानताना भ्रम. २. प्रो. जो. जेकोबीना आ संबंधेना शब्दो शब्द। बापरे छे:- Over bearing in acts and words, desirous for wealtle monks in self-control; lates sins in two ways (by his acts and thoughts) just as a monk Saint ( both on and in its body ). Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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