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________________ २८ 1 माणुस्सं विग्गहं लब्धं सुइ धम्मरसदुल्लहा। जसोच्चा पडि वज्जति तवं खंति महिंसय।।८॥ आहच्च सव्वणं लब्धं सद्धा परम दुलहा। सोच्चा नेयाउयं मग्गं बहवे परिभरसइ ।।९।। सुयंच लधुं सद्धंच विरियं पुण दुल्हं ।बहवे रोयमाणावि नोयणं पडिवज्जए ।।१०।। माणुसत्तंमि आयाओ जोधम्म सोच्च सद्दहे । तबस्सी विरियं लब्धं संवुडे निधूणेरयं ॥११॥ (२)कदाच मनुष्य देह मळे तो पछी धर्मनुं श्रवण दुर्लभ थइ पडे छे; जे धर्मनुं श्रवण करवायी जीव तप, क्षमा, दया, आदि अंगीकार करी शकेछ.[८]. [३]कदाचित धर्मद् श्रवण कयु, तो पछी धर्म उपर श्रद्धा धवी परम दुर्लभ थइ पडेछे अने घणा जीव शुद्ध मार्गजिन धर्म सांभळीने अंगिकार कर्या पछी ते थकी भ्रष्ट थाय छे (जमालीनी पेठे). [९]. [४] जीवे कदाच धर्मर्नु श्रवण कयु, ते सांभळीने ते उपर तेनी श्रद्धा बेठी, तो पछी उत्साहथी चारित्र पाळq दुर्लभ थइ पडे है. श्रेणीकनी पेठे] घणा जीव जाणे छे के धर्म छे तो सारो, पण पळातो नथी. १०]. मनुष्यपणुं पामीने, धर्मनुं श्रवण करीने, ते उपर श्रद्धा राखीने, तप जप ( चारित्र )ने विषे वीर्य-वळ दाखवीने साधु पुरुष आश्रवद्वारने रुंध जोइर अने कर्मरुपी मेलने फेडवो जाइए. (११). १. Combat their passions. २. Do adopt religion-अहिं चारित्र एटले दिक्षा लइ लेवानो भावार्थ नथी. संसारमा रहेनारा जीवो धर्मनां फरमान अनुसार वर्तन राखवाथी पण कर्म क्षय करी शके छे. ३. पाप लागवानां-कर्म बांधवानां साधनाने आश्रवदार नाय आपलं छे. ते माटे नव तत्वमां कहेगुं छे के :-" गुंताल सदा भरे, ज्यु आवत जल ओर, एसे आश्रय द्वारसें, कर्म बंधक जोर." जेम जेम पाणी आवतुं जाय छे तेम तलाव भरातुं जाय छे एवीते आश्रवधी कर्म विशेष बंधाय छे.जेम टांकीनं पाणी खाली करवा प्रथम नळर्नु आवतुं पाणी बंध करवू जोइए, तेम माप्त कौनो क्षय करवा, प्रथम नवां आवतां कर्म रोकवां जे.इए. ४. नव तत्वमा आ भावार्थनो बोध छे के:-" ज्यु आवत जल बुरीए, सुके सरोवर पान, त्युं आतम संवर कीए, कम निर्जरा ही जाण." जल आवतुं बंध थवाथी जेम सरोवर सुकाइ जाय छे. तेम संबर करवाथी-आवतां कर्म रोकवाथी कर्मनी निर्जरा थाय छ. आ संबंधेनुं विशेष क्वेिचन नव तत्वमा छे ते अवश्य मनन अने ग्रहण करवा लायक छे. 0000000000000र Jain Education Intomational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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