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________________ उ. अ. ३६ ३२५ माईया गहा एव माइओ । लोएग देसे ते सब्वे न सव्वथ्य त्रियाहिया ॥ १४० ॥ संतईपप्प णाईया अपज्जव सियाविय । ठि पडुच्च साईया सपज्जब सियाविय ॥ १४१ ॥ एगुणपन्न होरसा उक्कोसेण वियाहिया । तेइंदिय आउ ठिई अंनोमुत्तं जहन्निया ॥ १४२ ॥ संखेज्ज काल मुकोसा अंत मुहुंत्तं जहन्निया । तेइंदिय काय ठिई तं कायंतु अचओ ॥ ११३ ॥ अनंत काल मुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । ब्रेइंदिय जीवाणं अंतरेयं विआहियं ॥ १४४ ॥ एएल बन्नओ चे गंधओ रस फासओ संठाणा देसओबात्रि विहाणाई सहरससो ॥ १४५ ॥ चउरिंदियाओ जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्त मपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेहमे ॥ १४६ ॥ अंधिया पुत्तिया चेव मडिया मसगा तहा । भमरे कीड पयंगेय ढिंकणे कंकणे तहा ॥ १४७॥ कुक्कुडे सिंगिरीडीय णंदावतेय विलिए। डीले भिंगारीय विराली अने व बीज अनेक प्रकारनां त्रण इन्द्रियवाळां जीव लोकना एक देशने विषे व्याप्त छे, तेओ आखा लोकने विषे व्याप्त नथी. [१३९ १४० ] मवाह रुपे जोइए तो ऋण इन्द्रिय जीव आदि अने अंत रहित छे, परंतु हाल तेओ जे रुपे छे ते रुपे जोइए तो ते आदि ने अंत सहित छे. [१४१]. त्रण इन्द्रिय जीवनी उत्कृष्ट स्थिति ४९ दिवसनी अने जघन्य स्थिति अंत मुहूर्त्तनी छे. (१४२) त्रण इन्द्रिय जीव त्रण इन्द्रिय कायथी न मूकाय तो तेनी उत्कृष्ट स्थिति संख्याता काळनी अने जघन्य स्थिति अंत मुहूर्त्तनी छे. [१४३ ]. त्रण इन्द्रिय जीव त्रण इन्द्रिय कायथी चवीने उत्पन्न थाय तेनो उत्कृष्ट आंतरी अनंत काळनो अने जघन्य आंतरो मुहूर्त्तनो छे. [१४४]. त्रण इन्द्रिय जीवनां वर्ण, गंध, रस, स्पर्श अने संस्थानने लइने हजारो भेद पडी शके. [१४५]. चार इन्द्रिय (शरीर, जीभ, नाक, अने आंखवाळां) जीवना वे प्रकार छे:-पर्याप्त अने अपर्याप्त. तेना भेद कहुं हुं ते सांभळो. [१४६ ]. अधिका, पौत्तिका, मक्षिका, मच्छर, भमरा, कीट (पतंगीया), टिंकण, कुंकण, कुर्कट, श्रृंगरीटी, नन्द्यावर्त्त, वांछी, डोल, भृंगरीट, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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