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________________ एयाओ मूल पयडीओ उत्तराओय आहिया { पएसग्गं खित्त कालेय भावंवा दुत्तरं सुण ॥ १६ ॥ सव्वेसिं चेव । कम्माणं पएसग्ग मणंतगं । गठियसत्ताईयं अंतो सिद्धाण आहियं ॥१७॥ सब जीवाण कम्मंतु संगहे छहिसा गयं । सव्वेसवि पएसेसु सव्वं सव्येण बद्धगं ॥१८॥ उदहिसरि नामाणं तीसइं कोडिकोडीओ । उक्कोसिया ठिई होइ अंतोमुहुत्तं जहनिया ॥१९॥ आवरणिज्जाणं दुन्हपि वेयणिजे तहेवय । अंतराएय कम्ममि ठिई एसा विया हिया॥२०॥ उदहीसरिस नामाणं सत्तर कोडिकोडीओ। मोहणिज्जरस उक्कोसा अंतो मुहत्तं जहन्निया॥२१॥ तित्तीस सागरोवम उक्कोसेण वियाहिया । ठिई आउकम्मरस अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥२२॥ ए प्रमाणे आठ मूळ प्रकृति अने श्रुत-ज्ञानावरणीयादि उत्तर प्रकृति कही. (अर्थात-कर्मना प्रकार अने तेना भेद कह्या). हवे 1 तेना प्रदेशाम्र, क्षेत्र, काल अने भावनां स्वरुप कहुंछते सांभळो. [१६]. (द्रव्यथी) प्रत्येक कर्मना प्रदेशाग्र छे. तेनी संख्या (राग-द्वेषादि) गांठमां गंठायेला [अभव्य]जीवोना करतां अनंत गणी वधारे छे, परंतु सिद्ध जीवोना करतां (अनंतमे भागे) ओछी छे. [१७]. (क्षेत्रथी) कर्म सर्व जीवोने छए दिशामां बांधी लेछे अने कर्म आत्म-प्रदेशने सर्वाशे (दूध-पाणीनी पेठे) बंधन रुप छे.१८]. (काळथी) बन्ने आवरणीय (अर्थात-ज्ञानावरणीय अने दर्शनावरणीय) तेमज वेदनीय अने अंतराय ए चारे कर्मनी उत्कृष्ट स्थिति त्रीस* कोटानकोटी सागरोपमनी अने तेमनी जघन्य टुंकामां ढंकी स्थिति अंत-मुहर्तनी [बे घडीथी माठेरी] होय छे. (१९-२०). मोहनीय कर्मथी उत्कृष्ट स्थिति सित्तेर कोटानकोटी सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति अंत-मुहर्तनी होय छे. (२१). आयुः कर्मनी उत्कृष्ट स्थिति तेत्रीश कोटानकोटी सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति अंत-मुहर्तनी होय छे. [२२]. ००००००००००००००००००००००००००० *३००००००००००००००० लागरोपम. Jain Education Intematonal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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