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वेयणियंपिय दुविहं साय मसायंच आहियं । सायस्सओ बहू भेया एमेव असायस्सवि ॥७॥ मोहाणिजपि दुविहं दसणे चरणे तहा । दसणे तिविहं बुत्तं चरणे दुविहं भवे ॥८॥ सम्मत्तंचेव मिच्छत्तं सम्मामिच्छत्त मेवय । एयाओ तिन्नि पयडीओ मोहणिज्जस्स दंसणे ॥९॥ चरित मोहणं कम्मं दुविहंतु बियाहियं । कसाय मोहणिज्जंच नोकसाय तहेवय ॥१०॥ सोलस विह भेएणं कम्मंतु कसायजं । सत्तविहं नवविहंवा कम्मं नोकसायनं ॥ ११ ॥ - (३) वेदनिय-कर्म वे प्रकारनां छे :-[१] शाता-वेदनीय कर्म, (२) अशाता-वेदनीय-कर्म: शाता अने अशाता-वेदनीय कर्मना घणा भेद छे. (७). [४] मोहनीय-कर्म के प्रकारना छ :-[१] दर्शन-मोहनी-कर्म, [२] चारित्र-मोहनी कर्म. वळी दर्शन-मोहनीकर्मना त्रण भेद छे अने चारित्र-मोहनी-कर्मना चे भेद छ. दर्शन-मोहनी-कर्मना त्रण भेद :-[१] सम्यक्, (२) मिथ्यात्व, [३] | सम्यक्-मिथ्यात्व. चारित्र-मोहनी-कर्मना बे भेद :-[१] कषाय-मोहनी-कर्म अने [२] नोकषाय-मोहनी-कर्म. कषाय-मोहनी-कर्मना
सोळ अने नोकषाय-मोहनी-कर्मना सात अथवा नव भेद छे. [अनन्तानु बंधी, प्रत्याख्यानी, अप्रत्याख्यानी अने *संजल ए प्रत्येकमां क्रोध, मान, माया, लोभ ए रीते कषाय-मोहनी-कर्मना सोळ भेद थाय छे. नोकषाय पोहनी कर्मना भेद-हास्य, रति, अरति, भय, शोक, दुगंछा अने त्रणवेद, ए प्रमाणे सात, अने जो वणवेद अर्थात स्त्रीवेद, पुरुषपेद अने नपुंसकवेद ए त्रणे जुदा जुदा गणीए तो नव भेद थाय छे]. मोहनी कर्मना कुल २८ भेद थया. (८-११).
*संजवलन-थोडा वखतर्नु. जेम पाणीमां लींटी दोरी ते थोडा वखतमां भेगी थइ जाय छे तेम संजलना क्रोध, मान, माया, 18 लोभ थोडा वखत माटेनां होय छे.
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