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________________ उ. अ. ३३ २८८ एव मेयाई कम्माई अवउ समासओ ॥३॥ '[२] दर्शनावरणीय कर्म । जेम प्रतिहार राजानां दर्शन करतां अटकावे छे तेम आ कर्म दर्शनने रोके छे]. २ [३] वेदनीय कर्म (मधथी खरडेली खड्गधारानी पेढे शाता अशाता आ कर्मथी उपजे छे). ३ [४] मोहनीय कर्म ( मदिरानी पेठे अज्ञानी विकल अने बेभान आ कर्म करे छे). ४[५] आयुः कर्म ( नर्कादि गतिथी नीकळवा इच्छे पण आ कर्मथी हेडमां पुरेला केदीं पेठे नीकळी न शके ). [ ६ ] नाम कर्म [चितारानी पेठे चार गति रुप संसारमां घणा भव पमाडेछे]. [७] गोत्र कर्म (कुंभारना चाकडानी पेठे उच्च निगम कर्म जन्म लेकरावे छे). [८] अंतराय कर्म (राजानी तेजुरी साचवनार पोताना उपयोग माटे एक पाइ न लइ शके तेम आ कर्मथी बंधायेला सदुपयोग न करी शके). [२३] . १ Which acts as an obstraction to right faith. आ दर्शनावरणीय कर्मे अनंत दर्शन गुण रोकेला छे. २ Which leads to experiencing pain and pleasure. अनंत अव्यावाध आत्मिक सुख आ कर्मने लीधे प्राप्त थइ शकतुं नथी. ३ Which leads to delusion. आ कर्मे क्षायक समकित गुण रोक्यो छे. ४ Which determines the length of life. आ कर्म अक्षय स्थिति गुण गुमावे छे. ५ Which determines the name or individuality of the embodied soul. आधी अमूर्त्ति गुण रोकायछे. ६ Which determines his Gotra. आ कर्मथी अगुरु लघु गुण गुम थाय छे. ७Which prevents one's entrance on the path that leads to eternal bliss. अनंत आत्म शक्ति गुण आ कर्मथी दवाइ जाय छे. आ आठ कर्मनो क्रम विचारवा जेवोछे, नाम कर्मने छटुं केम मुक्युं अने अंतराय कर्म आठ शा माटे गोठव्युं ए ज्ञान गोष्टि समजवा जेवी छे. ज्ञान अने दर्शन ए जीवत्वनां मुख्य तत्व छे ते मांए ज्ञान प्रधान छे. ज्ञानथीज सारासारनं भान थतां जीवन सार्थक थाय छे माटे ज्ञानने प्रथम पद आपी तेने रोकनार ज्ञानावरणीय कर्मने प्रथम अने बीजो नंबर दर्शनावरणीय कर्मने आपलछे. आ बे कर्मना विपाकना उदय निमित्त वेदनिय कर्मछे. वेदनिय कर्मथा सुख दुःख थत, राग द्वेषने जन्म मळेछे जे मोहनीय कर्मछे. मोहांध थतां फरी जन्म भ्रमण कर पडेले एथी आयुष्यनी आवश्यकता उभी थायछे. आयुष्य उत्पन्न थवाथी नाम कर्म आवी वळगेले ते साथ गोत्रनो पण संबंधछे अने गोत्रानुसार अंतराय कर्मने आधीन था विना छुटको थतो नथी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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