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________________ उ.अ./ २५१ 20100.... १९९००० नाणसंपन्नयाएणं भंते जीवे कि जणयइ नाणसंपन्नयाएणं जीवे सव्वभावाभिगमं जणयइ नाणसंपन्नेणं जीवे चाउरंत । संसार कंतारे नविणरसइ जहासुइ ससुत्ता पडियाविनविणस्सइ । तहा जीवो विससुत्तो संसारे नविणस्सइ नाण वि-8 णय तवचरित्राजोगे संपाउणइ ससमयपरसमय संघायणिज्जे भवइ ॥ ५९॥ दसण संपन्नयाएणं भंते जीवे किं जणयइ दंसणसंपन्नयाएणं भवमिछुत्तयणंकरेइ । परं नविझायइ परं अविझायमाणे अणुत्तरेणंनाणदसणेणं अप्पाणं संजोएमाणेसम्मभावेमाणे विहरइ ॥ ६ ॥ चरित्त संपणयाएणं भंते जीवे किं जणयइ । चरित संपणयाएणं सेले सीभावंजणयइ । सेलेसीभावं पडिवणेय अणगारे चत्तारि केवलि कम्मंसे खवेइ। तओ पछा सिझइ बुझइ मुञ्चइ परिनिव्वायइ सव्वदुख्खाण मंतं करेइ ॥ ६१ ॥ ५९. ज्ञान-संपन्नताथी *जीव-अजीवन स्वरुप ( तत्व ज्ञान ) जाणी शकाय छे.* अने एवो तत्व ज्ञान संपन्न जीव चतुर्गति संसाररुप अटविने विषे भटकी मरतो नथी. जेम सूत्र [ दोरो] परोवेली सोय कचरामा खोवाइ जती नथी तेम सूत्र [सिद्धान्त ] ज्ञाने करीने सहित जीव संसारमा गुम थतो नथी. ते ज्ञान, दर्शन, तप अने चारित्रना योग सम्यक प्रकार साधे छे, अने पोतानां | तेमज पर धर्मनां शास्त्रामा निपुणता भेळवे छे अने प्रधान १ पुरुष [ अजीत ] गणाय छे. [५९. ६०. दर्शन-संपन्नताथी भव (भ्रमण न कारण जे मिथ्यात्व तेने छेदी शकाय छे अने आत्मामा ज्ञान, दर्शन अने चारित्रनो ] जे प्रकाश होय छे तेनो नाश थतो नथी; परंतु ते पोताना आत्माने ज्ञान दर्शन युक्त राखीने सम्यक्त भावथी विचरे छे. [६०]. ६१. चारित्र-संपन्नताथी जीव शैलेशीभाव एटले मेरु पर्वतना जेवी दृढता उपार्जे छ; अने ते वडे जीव चार केवलि कर्मना अंशनो क्षय करी शके छ; अने त्यार पछी सिद्धि, बुद्धि, मुक्ति अने निर्वाण पामे छे अने सर्व दुःखनो अंत आणी शके छे. (६१). *आने बदले मो. जेकोबी एवो अर्थ करे छे के ' शब्द भने शब्दार्थ जाणी शके छे. १ Invincible 2००००० ००००००००००००००००० ०००००००0-3-6 Jain Education Intomational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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