________________
Prernamsut
2010
उ... न कजं मझ भिख्खणं विप्पं निख्खभसूदिया । माभमिहि भयाव घोरे संसार सागरे ॥४॥उबलेनी होइ भांगेमु 18 अभोगी नोव लिप्पइ । भोगी भमइ संसारे अभोगी विष्पमुच्चइ ॥४१॥ उल्लो सुकोय दो छूढा गोलया मट्टियामया।
दोवि आवडिया कुडे जोउल्लो सोतथ्थ लगइ ॥४३॥ एवं लग्गति दुम्मेहा जे नरा कामलालसा । विरत्ताउ नलग्गंति
जहा सुकेउ गोलए ॥ ४३ ॥ एवं सो विजयघोसे जयघोसरस अंतिए । अणगारस्स निख्खंतो धम्मंसुच्चा अणुत्तरं 8॥ ४४ ॥ खवित्ता पुव्व कम्माइं संजमेणतवेणय। जयघोस विजयघोसा सिध्धिपत्ता अणुरारं तिबेमि ।। ४५ ॥
॥ इति जन्नइज्जंनाम झयण पचविसमं समत्तं ॥ २५ ॥ ए सांभळीने मुनि कहेछे, “ भिक्षानी मने जरुर नथी. पण हे द्विज ! तुं शीघ्र दीक्षा ग्रहण कर; अने घोर संसार सागरने विषे परिभ्रमण करतो अटक, कारण के तेनुं [ सप्तभयरुपी ] क्मळ अति भयानक छे. [४०]. "काम भोगने विषे लेपरहेलो छे; जेओ भोग भोगवता नथी तेओ ए लेपथी खरडाता नथी अने जेओ भोग भोगवे छे तेओने संसारमा भ्रमण कर पडे छ; जेओ अभोगी छे तेओ संसारथी मुक्त थाय छे. (४१). "एक लीलो (भीनो) अने बीजो सूको एम माटीना बे गोळा लइने भीत साथे
अफाळीए तो लीलो गोळो भीतने चोंटी रहे छ (अने मूको खरी पडे छे).[४२]. "एवी रीते दुष्ट बुद्धिनां अने काम लालसाबाळां 81 मनुष्यो संसारमा [कर्मने चोंटी रहे छे; पण जेभो काम भोगथी विरक्त छे तेओ माटीना सूका गोळानी पेठे चाँटी रहेता नथी."
(४३). आ प्रमाणे जयघोष मुनिनी पासेथी सर्वोत्तम धर्म श्रवण करीने विजयघोष ब्राह्मणे दीक्षा ग्रहण करी. (४४). जयघोष अने विजयघोष बन्ने सत्तरभेदे संयम अने वार भेदे तप आदरोने, पोतानां पूर्व कर्मनो क्षय करीने, सर्वोत्तम सिद्ध गतिने प्राप्त थया.
* पचीसमुं अध्ययन संपूर्ण. * * Glue.
००००००००००००००००००००००
००००००००००००००००
an Educationa intematonal
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org