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________________ जअ ००००००० जहाचंदं गहाईया चिठ्ठति पंजलिउडा । वंदमाणा नमसंता उत्तम मणहारिणो ॥ १७ ॥ अजाणग्ग जन्नवाइ वि. ज्जामाहण संपया । मूढा सझाय तवसा भास छन्नाइवग्गिणो ॥ १८ ॥ जोलोए बंभणो वुत्तो अग्गीवा महिउ जहा । सयाकुसल संदिळं तंवयं बूममाहणं ॥१९॥ जोन सज्जइ आगंतुं पव्वयंतो न सोयई । रमइ अज्जवयणमि तंवयं बूममाहणं ॥ २० ॥ जाय रूवं जहामढ़ निर्धात मलपावगं । रागदोसभयातीतं तंवयं बूममाहणं ॥ २१ ॥ ___जेम ग्रहो, नक्षत्रो अने तारा, चंद्रनी आगळ हाथ जोडीने उभा रहे छे अने नमस्कार करतां यका तेनी सेवा करेछे, तेम.18 मनोहर देवताओ (इन्द्रादि) श्री ऋषभदेव भगवानने विनय पूर्वक वांदीने तेमनी स्तुति करे छे. (१७), तत्वना ज्ञान रहित, यज्ञवादी ब्राह्मणो यज्ञना जाणपणानो डोळ करेछे, पण तेओ अग्नि विद्या अने ब्राह्मण सम्पदायी अज्ञान होय छे अने अग्नि जेम। राखमां ढंकाइ रहे छे तेम तेश्रो स्वाध्याय अने तपमा ढंकायेला (बहारथी शान्त पण अंतस्मां क्रोध, मान, माया, लोभादियी दग्ध) से छे. [१८]. "जेने लोको ब्राह्मण कहेछे अने अग्निनी पेठे पूजे छे ते खरो ब्राह्मण नथी. पण जेने कुशळ [ विद्वान ] पुरुषो ब्राह्मण कहे छ तेने अमे खरो ब्राह्मण कहीए छीए. (१९). “जे दीक्षा लीधा पछी संसारीनो संग करतो नथी, जे साधु थया बाद 18 स्थानान्तर थवाथी शोच करतो नथी अने जे २ आर्य (तीर्थंकरना) वचनथी संतोष पामे छे, तेने अमे खरो ब्राह्मण कहीए छीए. (२०). जे राग, द्वेष अने भय रहित होय अने जे अग्निमां शुद्ध करेला अने ओप चढावेला सुवर्णनी माफक पाप मळथी रहित होय तेने अमे खरो ब्राह्मण कहीए छीए. (२१). ००००००००००००००००००००००००००००००००००००० १. संस्कृत टीकाकार आनो एवो अर्थ करे छे के "स्वजन मळवाथी जे तेने भेटी पडतो मथी अथवा तो तेमनाथ विखुटो पडती वखते शोच करतो नथी." २. Noble words. Jain Education Intematonal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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