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उ.अ.। उस्ससिय रोमकुवो काऊणय पयाहिणं । अभिवंदि ऊणसिरस्सा अझ्याओ नराहिओ ॥ ९ ॥ ईयरोवि
। गुणसमिद्धोतिगुत्तिगुत्तोतिदंड विरओय विहंगइव विप्पमुक्को विहरइव सुहं . विगयमोहो तिबेमि
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ॐ ॥ इति श्री महाभियंठिज्ज झयणं बीसमं सम्मत्तं ॥
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हथी जेना शरीरना रोयांच उभा थयां छ एषो श्रेणिक नराधिप मुनिश्वरने प्रदक्षिणा दइ*, मस्तक नमावी बंदणा करीने पोताने घेर गयो. [१९]. अने गुणे करीने समृद्ध, प्रण गुप्तिए गुप्त, मन, वचन, कायाये करीने पाप कर्पथी निकृत, एवा ममत्वभाव 8 अने मोह रहित मुनि पक्षिनी पेठे जगतने विषे विचरवा लाग्या..(६०).
** वीसमें अध्ययन संपूर्ण. **
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* आने पदले आगळ माफक मोफेसर जेकोबी लखे छे के " पोलानी जमणी बाजुए राखीने ".
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