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उ. अ. २०
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नतं अरीकंठछेत्ता करेइ जंसेकरे अप्पणिया दुरप्पया सेनाहई मच्धुमहंतु पते पाणुतावेण दयाविहृणो ॥ ४८ ॥ निरठ्ठिया निग्गरुई तस्सजेउत्तमठ्ठे विवज्जासमेई । इमेविसेनथि परेविलोए दुहओ विसेखिझइतथ्थ लोगे ॥३॥ एमेवहा छंदकुसीलरूवे मग्गविराहित्तु जिणुत्तमाणं कुररी विवाभोग रसाणुगिन्छा निरनुसोयापरि यावमेइ || ५० ॥ सोचाण महाविसुभासि इमं अणुसासणं नाणगुणो बवेयं । मग्गं कुसीलाण जहायसव्वं महानियं ठाण वएपणं ॥ ५१ ॥ वरित्तमायार गुणण्णिएतओ अणुत्तरं संजमपालियाणं । निरासवेसंख्खवियाणकम्मं उवेइठाणं विउलुत्तमं धुवं ॥ ५२॥
[दुरात्मता [ दुष्टाचार ] जे दुःख उपजावे छे तेवं दुःख गळु वाढनार बेरी पण उपजावी शकतो नथी १ दयारहित मनुष्यने मरण समये पश्चाताप थाय छे. [४८ ]. “ जे साधु संयमरुपी उत्तम मार्गने विषे विपरीत गतिथी बर्ते छे, तेनुं चारित्र [नग्न-सा ] निष्फळ थाय छे; ते आ लोक के परलोक साधी शकतो नथी, अने उभय लोकनां सुखधी भ्रष्ट थाय छे. [४९]. " आ प्रमाण जे स्वच्छंदी, कुशील साधु उत्तम जिन-मार्ग विराधीने टीटोडीनी पेठे रस-भोगमां ग्रस्त रहे छे, तेने [पछीथी थतो ] शोक, पश्चात्ताप निरर्थक छे. (५०), “ हे पंडित ! हे राजन ! आ शुभाषित अने ज्ञान दर्शन चारित्रना गुणवाळो उपदेश सांभळे छे, ते कुशील मार्ग तजे छे अने महा निग्रंथनो मार्ग सेवे छे. [५१]. “जे कोइ चारित्राचारना गुणे करीने सहित छे, जे सर्वोत्तम संयम पाळे छे, जेणे सर्व आश्रव संध्या छे, र अने जेणे हिंसारहित आठ कर्मने खपाच्यां छे, ते विपुल, उत्तम अने निश्चळ मुक्तिने पामे छे. " [५२].
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1. A cut throat enemy will not do him such harm as his own perversity will do him. 2. Who keeps from sinful influences.. The permanent place.
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