SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उ.अ ००००००००००००००००००००००००००० तरसमे अप्पडिकं तस्स इमं एयारिसं फलं । जाणमाणाविजंधम्मं कामभोगेसु मुडिओ ॥ २९ ॥ नागोजहापंकज लायसन्नो दलुथलंनाभि समेइ तीरं । एवं वयं कामगुणेसूगिडा नमिख्खूणोमगगमणुव्वयामो ॥ ३० ।। अव्वेइकालो तुरियन्तिराइओ नयाविभोगा पुरिस्साणनिच्चा । उविच्चभोगा पुरिसंचयंति दुम्मं जहाखीणफलं वपरूखी ॥ ३१ ॥ | जइतंसिभोगे चइउ असत्तो अजाइ कम्माइं करेहि रायं । धम्मेठिओ सव्वपयाणु कंपी तोहोहिसि देवोइउ विउव्वी ॥३२॥ नतुझ भोगे च इऊण बुही गिद्धोसि आरंभ परिग्गहेसू । मोहं कउएतिओविप्पलावो गामि रायं आमंतिओसि ॥३३॥ ०००००००००० ००००० ___'ए निदान में आलोव्यु नहिं. (एवा दुष्ट संकल्पने माटे में पाछळथी पश्चाताप को नहि) तेथी तेनुं एवं फळ आव्युंछ के धर्मनो मार्ग हुँ जाणुं छतां काम भोगने विषे आसक्त रहुं छ. [२९]. 'जेम पंकजळ (कादववाळी जग्या)मां निमग्न थइने झुंचतो हाथी, कांठो नजरे देखवा छता कादवमाथी बहार नीकळतो नथी, तेम काम भोगमा लुब्ध थयेला अमे साधु धर्म आचरी शकता नथी.' [३०]. ए सांभळीने मुनि बोल्या, “हे राजन! काळ त्वराथी वहे छे अने रात्रि दिवस झडपथी पसार थइ जाय छे; मनुष्यनां काम भोग पण अनित्य छे. जेम पक्षी फळ रहित वृक्षने तजी जाय छे, तेम काम भोग मनुष्यनी पासे आवीने न्हासी जाय छे. [३१]." हे गजन! काम भोग छांडवाने तुं असमर्थ होय तो उत्तम कार्यों कर; धर्मने विषे दृढ रहीने सर्व जीव उपर अनुकम्पा राख; तेम करवाथी आ मनुष्य देहथी छूटया पछी तुं शक्तिबान देवता थइश.२ [३२]. “आटलुं छतों पण काम भोग छोडवानी तारी | इच्छा न थती होय, अने हजी पण तुं आरम्भ, परिग्रहमां ग्रस्त रहेवा इच्छतो होय तो में जे वचमालाप को ते सर्व व्यर्थ गयो छे. | तो हवे तारी आज्ञा मागीने हं अहिंथी जाउं छ." [३]. ०००००००० १. The pleasures of men are not permanent. २. संसारमा रहीने पण जीवन सार्थक करवा आकुंचीछे. Jain Education intomational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy