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________________ ४५ अर्थ- वली हे युधिष्टर ! जेयो व्रतधारी होय, तेश्रोने ब्राह्मण जाणवा, जेयो हाथमां हथियार धारण करे, तेने त्रीय जाणवा, तथा जेयो खेतीनुं काम करे, तेोने वैश्य जाणवा, तथा जेश्रो चाकरी करे ने शुद्ध जाणवा ॥ १७३ ॥ ब्रह्मचर्यतपोयुक्ताः, समपाषाणकांचनाः ॥ सर्वभूतदयायुक्ता, ब्राह्मणाः सर्वजातिषु ॥ १७४ ॥ अर्थ-ब्रह्मचर्य तथा तपे करीने युक्त, तथा तुल्य बे पाषाण ने सुवर्ण जेमने एवा, तथा सर्व प्राणीयो प्रते दयावाला एवा, सर्व जातियोमां ब्रह्माणो होय बे. शूरा वीराश्च विक्रांता, बह्वारंजपरिग्रहाः ॥ संग्रामकरणोत्सुकाः, क्षत्रियाः सर्वजातिषु ॥ १७५ ॥ अर्थ- शुरवीर, विकाल, घणा आरंज परिग्रहवाला तथा रणसंग्राममां उत्सुक एवा, सर्व जातियोमां क्षत्रिय होय बे ॥ १७५ ॥ पंमिताः कुलजा दक्षाः कलाकौशलजीविनः ॥ कृषिकर्मकराश्चैव वैश्यास्ते सर्वजातिषु ॥ १७६ ॥ - पंमित, कुलिन, माह्या, कलानां प्रबलथी श्र जीविका चलावनारा, तथा खेती करनारा एवा, सर्व जातियोमां वैश्यो पण होय बे ॥ १७६ ॥ के ब्राह्मणगुणाः प्रोक्ताः, किं तद्ब्राह्मण लक्षणम् ॥ एतदिच्छामि विज्ञातुं तवान् दिशतु मम ॥ १७७ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International > www.jainelibrary.org
SR No.003690
Book TitleDharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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