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________________ हवे तीर्थनो अधिकार कहे बे. सत्यं तीर्थ तपस्तीर्थ, तीर्थमिंत्रियनिग्रहः ॥ सर्वजूतदया तीर्थ, एतत्तीर्थस्यलक्षणम् ॥ ११० ॥ अर्थ-सत्य,तप,इंजियोनो निग्रह तथा सर्व प्राणीयो प्रते दया, ए तीर्थ डे, अने तेज तीर्थ- लक्षण . आत्मानदी संयमतोयपूर्णा ॥ सत्यावहा शीलतटा दयोर्मिः॥ तत्रानिषेकं कुरु पांडुपुत्र ॥ न वारिणा शुद्ध्यति चांतरात्मा ॥ ११ए॥ अर्थ-संयमरूपी पाणीथी नरेली, सत्यने धारण करनारी, शीलरूपी कांगवाली तथा दयारूपी मोजांवाली एवी आत्मरूपी नदीमां, हे पांमुपुत्र ! तुं अनिषेक कर ? केमके केवल पाणीथी कंश अंतरात्मा शुद्ध थतो नथी. ॥ ११ ॥ चित्तमंतर्गतं उष्टं, तीर्थस्नानेन शुध्यति ॥ शतशोऽपि जलै धौतं, सुरानांममिवाशुचि॥ १० ॥ अर्थ-अंतरमा पुष्ट थएवं एवं जे चित्त ते तीथनां स्नानोथी कंई शुद्ध थतु नथी, केमके सेंकमो वखत पाणीथीधोएलो एवो मद्यनो घमो अपवित्रज रहे . मृदोनारसहस्रेण, जलकुंनशतेन च ॥ न शुद्ध्यति पुराचाराः, स्नानतीर्थशतैरपि ॥ ११ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003690
Book TitleDharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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