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________________ १६ अर्थः- दमा बे ते शांति, शस्त्र, कल्याण, धीरज, धन, चित्त, रक्षा ने बल बे ॥ १०१ ॥ दमा नाथः क्ष्मा त्राता, क्षमा माता क्षमा सुहृदू ॥ क्षमा लब्धिः क्षमा लक्ष्मीः, क्षमा शोभा क्रमा शुभम् ॥ १०२ ॥ अर्थः- क्षमा बे ते, स्वामी, रक्षणकरनार, माता, मित्र, लब्धि, लक्ष्मी, शोजा ने श्रेय बे ॥ १०२ ॥ दमा श्लाघा क्षमा चारः, दमा कीर्तिः क्ष्मा यशः ॥ दमा सत्यं च शौचं च, क्षमा तेजः क्ष्मा रतिः ॥ १०३ ॥ अर्थ::- दमा बे ते, प्रशंसा, आचार कीर्ति, यश, सत्य, पवित्रता, तेज ने मोजशोक बे ॥ १०३ ॥ क्षमा श्रेयः क्षमा पूजा, क्षमा देवः क्षमा हितम् ॥ क्षमा दानं पवित्रं च क्षमा मांगल्यमुत्तमम् ॥ १०४ ॥ अर्थः- क्षमा बे ते, कल्याण, पूजा, देव, हित, -- पवित्र दान तथा उत्तम मांगल्य बे. ॥ १०४ ॥ कांतितुल्यं तपो नास्ति, न संतोषात्परं सुखम् ॥ न मैत्रीसदृशं दानं नास्ति धर्मो दयासमः ॥ १०५ ॥ अर्थ- वली हे युधिष्टर! दमा समान कोइतप नथी, संतोषथी बीजं उत्तम सुख नथी, मित्राइ समान बीजुं दान नथी, ने दया समान बीजो धर्म नथी ॥ १०५ ॥ कामक्रोधादिसहितः, किमरस्यैः करिष्यति ॥ अथवा विनिर्जित्यैतौ, किमरस्यैः करिष्यति ॥ १०६ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003690
Book TitleDharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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