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________________ २४ अर्थ-जे उत्तम ब्राह्मणो निष्टा सहित ब्रह्मचर्य पाले , तेश्रो देवोने पण पूजनीक थाय , तथा तेयो पवित्र मंगलरूप . ॥ ए३॥ शीलानामुत्तमं शीलं, बतानामुत्तमं व्रतम् ॥ ध्यानानामुत्तमं ध्यानं, ब्रह्मचर्य सुरक्षितम् ॥ एच ॥ अर्थ-उत्तम रीते पालेबुं ब्रह्मचर्य,सघलां शीलोमां उत्तम शील , तथा सघलां व्रतोमा उत्तम व्रत , अने सघलां ध्यानोमां उत्तम ध्यान . ॥ ए४ ॥ पुत्रदारकुटुंबेषु, सक्ताः सीदति जंतवः ॥ सरःपकार्णवे मना, जीर्णवीर्या गजा श्व ॥ एए॥ अर्थ-पुत्र, स्त्री अने कुटुंबने विषे शासक्त थएला एवा जंतुस्रो, तलावनां कादवरूपी समुरुमां बुडेला, तथा जीर्ण थएल ने वीर्य जेश्रोनुं एवा हाथीयोनी पेठे दुःख पामे बे. ॥ ए५ ॥ हवे तेज शांतिपर्वमा वर्णवेधुं क्रोधनुं स्वरूप कहे . क्रोधः परितापकरः, सर्वस्योगकारकः ॥ क्रोधो वैरानुषंगीकः, क्रोधः सुगतिनाशकः ॥ ए६ ॥ अर्थ-क्रोध ले ते, सर्वने परिताप, तथा उठेग करनारो बे, वली ते वैर करावनारो, तथा सुगतिने नाश करनारो . ॥ ए६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003690
Book TitleDharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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