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________________ प्रस्तावना ॥ । धर्मसर्वस्वाधिकारः । सर्वे जैन जाने मालुम थाय जे आपणो आ जैन धर्म सर्व धर्मो करता वधारे सूक्ष्म रीते दयामय बे; अने तेथी तेमां दया संबंधि विशेष उपदेश आपेलो बे; जैनी योनी तेवी सूक्ष्म दया जोइने आधुनिक समयमा अन्य दर्शनी ते संबंधि पोताने मनगमती चर्चाओ करे बे; पण या ग्रंथ वांचवाथी तेने पोताने पण जाशे के; आपणां पुराण, स्मृति, गीता आदिक शास्त्रमां पण दयासंबंधि केटलो बधो अमूल्य उपदेश आपेलो बे. वली केवल दयासंबंधिज नहीं, पण मांसजनां दूपए रात्रि जोजननां दूषणो, कंदमूललक्षणना दूषणो. अगल पाणी वापरवाना दूषणो विगेरे अनेक प्रकारनो ते पुराणो आदिकमां उपदेश करेलोबे; ते उपदेश अंचलगच्छाधिपति आचार्य महाराज श्री जयशेखरसूरीश्वरे पुराणो आदिकमांथी धरीने अन्य दर्शनी पर खरेखर महोटो उपकार कर्यो छे. वली ते आचार्य महाराज महान विधान ने कविचक्रवर्ती हता. हाल पण तेमना रचेला महान ग्रंथो मांहेला, जैनकुमारसंभव महाकाव्य, उपदेशचिंतामणि, प्रबोधचिंतामणि तथा धम्मिल्लचरित्र दिक घणा ग्रंथो दृष्टिगोचर थाय बे. अने ते जोवाथी तेमनी महान विद्वत्ता खरेखर जाइ यावे . मसिंह माणेक. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003690
Book TitleDharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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