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________________ १३५ श्री श्रादिजीन विन्ती. सुए जीनवर शेत्रुंजा धणीजी, दास तणी अरदास ॥ तुज आगळ बाळक परेजी, हुं तो करूं वेपासरे ॥ जीनजी मुज पापीने तार ॥ तुंतो करुणारस नर्योजी, तुं सद्दुनो हितकाररे जीनजी ॥ ज० ॥ १ ॥ हुं अवगुणनो ओरडोजी, गुण तो नहीं लवलेश । परगुण पेखी नवि शकुंजी, केम संसार तरेशरे जीनजी ॥ मुज० ॥ २ ॥ जीवतणां वध में कर्याजी, बोल्या मृषावाद, कपट करी परधन हर्यांजी, सेव्या विषय सवाद रे जीनजी ॥ मुज० ॥ ॥ ३ ॥ हुं लंपट हुं लालचीजी, कर्म कीधां केई क्रोम ॥ त्र वनमां को नहींजी, जे आवे मुज जोकरे जीनजी ॥ मुज० ॥ ॥ ४ ॥ परायां हनीशेजी, जोतो रहुं जगनाथ ॥ कुगति ती करणी करीजी, जोमयो तेहशुं साथरे जीनजी ॥ मुज० ॥ ॥ कुमति कुटील कदाग्रहीजी, वांकी गति मति मुज ॥ वांकी करणी महारीजी, शीसंजळावं तुजरे जीनजी ॥ मुज० ॥ ॥ ६ ॥ पुन्य विना मुज प्राणिखोजी, जाणे मेलुंरे श्रथ ॥ उंचां तरुवर मोरीयांजी, त्यांही पसारे हाथरे जीनजी ॥ मुच० ॥ ७ ॥ वीण खाधा वीण जोगव्याजी, फोगट कर्म बंधाय ॥ श्रर्तध्यान मी नहींजी, कींजे कवण उपायरे जीनजी ॥ मुज० ॥८॥ काजळथी प्रण शामळाजी, मारा मन परणाम | सोणां मांही ताहरु जी, संजारुं नहीं नामरे जीनजी ॥ मुज० ॥ ॥ मुग्ध लोक ठगवा जीजी, करूं अनेक प्रपंच ॥ कुरु कपट हुं केळवीजी, पाप तणो करु संचरे जीनजी ॥ मुज ॥ १० ॥ मन चंचळ न रहे की मेजी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003690
Book TitleDharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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