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________________ १३७ अर्थ-शीलोए करीने सर्व शीलधारीउना, गुणोए करीने गुणवानोना तथा बुद्धिजेए करीने बुद्धिवानोना आ गुरु (श्रेष्ट) बे, अनेमारा पण गुरु बे, एम मानीने हुमायुना पुत्रे (अकबर बादशाहे) “श्रा जगतना गुरु डे” एवी रीतनी जगतमां आनंद करनारी जेयोनी प्रख्याति करेली , एवा तथा चंदन, चंद्र मोती, चंडविकासी कमल, तथा कैलास पर्वतसरखी जलसायमान थती जे कीर्ति, तेना देदीप्यमान किरणोथी मंमित करेली में दिशाउने जेथोए एवा उत्कृष्ट की. तिवाला तथा शिवश्रीवाला अने मुनिश्रोमां हीरासमान, एवा श्री हीरविजयसूरि महाराजना मनोहर राज्यमां (समयमां) पंमित श्री हेम विजय गणिजीए श्रा “कस्तूरीप्रकरण” नामनी सूक्तावली रची . १७७ कमल विजयसंझपाझपारीपाद यकमलविलासे लूंगतां संगतेन ॥ रसिकजनविनोदा सूत्रिता सूक्तिमाला । श्रियमयतु जनानां कंपीठे लुवंती ॥ ११ ॥ अर्थ-कमल विजयजी गणि नामना महा पंमित (गुरुना) बन्ने चरणोरूपी कमलना विलासप्रते भ्रमरतुल्य थएला (एवा श्री हेमविजयगणिजीए) बना. वेली, तथा माणसोने विनोद आपनारी श्रा “सूक्ति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003690
Book TitleDharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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