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________________ (४८) ॥ अथ श्री धर्मनाथलनी ॥ ॥ सजि धर्मनिनेसर पूनियों, निन पूने भोहनें घूरने लु चयए। सुधारस पीलरों, डिन्नर म्हं रील रसें ॥शा धनि॥उ ॥ अथ श्रीशांतिनाथलनी ॥ ॥शांतिसुर साड़ीजी, संन्ग्भ अवधारे॥ सुभतिने घरे पार ए ं, लव पार बीतारे ॥ वियरंता श्जवनीतलें, तपडीय विहारें ॥ज्ञान - ध्यान रखे तानथी, तिथंचने तारे ॥शा पास वीर वासुपूज्यन्ल, नेम मस्सि कुमारी ॥ राज्य विछूएगानेथया, जापेव्रतधारी ॥ शांतिनाथ प्रभुजा सवि, सही राज्य निवारी । भष्सि नेम परएयांनहीं, जीन्न घर जारी ॥शाउनऊ उभस पगसांडवे, न्ग शांति दुरीनें गारया सिंहासन ए। जेसीने, लसी देशना हीनें गालेगावंय प्राणिया, इस सेतांरीनें पुज्जलावर्त्तनाभेघभां, भगसेसन लीनें ॥ आक्रोडचघ्न स्युड शरी ढो, स्यांग धूपें यारा हाथ जीन्नेरें उभल छे, हक्षिएा उरसाशान्क्षण रेडचाम पाएगी में, नीमुसाक्ष बजाएंगे। निर्वाणीनी वात तो, उवि बीर तेन्नए॥ना तिमा ॥ जय श्री हुंथुनाथलनी ॥ ॥वशी कुंथुव्रती तिसङीन्गती, महिमा महुतीनतरतती॥ प्रथितागभ ज्ञान गुए। विभला, शुलवीर भतां गांधर्व जलाशा ॥ अथ श्री सरनाथलनी ॥ ॥ जर विलु रविनूतस द्योतएं, सुभनसा मनसार्थित पहने पनि गिरा नगिरा पर तारएणी, प्रात यक्षपतिवीर धारणी॥था ॥ जय श्रीभस्तिनाथलनी ॥ ॥ मल्लिनाथ भुजयं निहासुं, स्नरिहंत प्रएाभी पा तङ यलुंगा ज्ञानानंद विभल पुरसेर, घरएामिया शुल चीर दुखेर ।शार्धति॥७ ॥ अथ श्री भुनिसुव्रतनी ॥ ॥ सुव्रत स्वामी, जातिभ रात्री, पून्ने लवि भनरसी ॥न्निगुएा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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