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वगलने लहंत लङ्कटिश, वीरविन्य ते हेच ॥था रार्धति॥दुधा ॥ जय श्री सुविधिनाथन्कनी ॥
॥ सुविधि सेवा उश्ता हेवा, तल विषयवासना ।। शिवसुज हाता ज्याता त्राता, हरे दुख घसनां ॥नयगम लंगें रंगें यंगें, बासील बहारिमा अमर अळतें मोहानीतें, वीरंथ सुतारि॥शार्धतिदु ॥ जय श्रीशीतसन्निनी ॥
॥ शीतष प्रभु हरसा, शीतल अंग डीपांगे ॥ उल्याएम् पंथे, प्राणी गए। सुजसंगे तो वचन सुएातां, शीतस डेभ नहीं सोआशु लवीरतेष्ञह्मा, शासन हेवी अशी आशा ताना
॥ जय श्री श्रेयांसनी ॥
॥ श्रीश्रेयांस सुहंम्रपामी, घेरछे रनवर हुए। हेवान्लङননই सेरे हुए। प्रनुने, छंडी सुरतरं सेवाला पूर्वापर अविरोधि स्यात्पछ, चाएगी सुधारस वेलीला मानवी भएश्जेसर खुपसायें, पीर हृध्यमां इेसीकाशा पार्धति॥
॥ जथ श्रीवासुपून्यलनी ॥
॥ विभस गुए। नगारं वासुपूज्यं सारं निहत विषविद्यारंभा तदैवत्यसारंगावधन रस पीहारं मुक्तितत्त्वंवियार, वीर विधन निवा रंस्तौमि थंडीहुभाशाशा र्धति॥डणा ॥ अथ श्रीविभसन्निनी ॥
॥ विभसनाथ विभसगुएावस्या, न्निपह लोगी लवनिस्त रावाएगी पांत्रीश गुएा सक्षणी, छम्भुहु सुर प्रवरान्क्षएगी॥शा ॥ अथ श्रीजनंतनाथलनी ॥
॥ ज्ञानाधिजगुएावरा निवसंत्यनंते, वन्त्र सुपर्व महिते निपा हपस्नेाभ्रंथाचे भतिवश प्रगतिस्मलस्त्या, पातालयांकुशि सुरीशु लवीरशक्षाशा ॥छति॥शा
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