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________________ ( ४ ) वगलने लहंत लङ्कटिश, वीरविन्य ते हेच ॥था रार्धति॥दुधा ॥ जय श्री सुविधिनाथन्कनी ॥ ॥ सुविधि सेवा उश्ता हेवा, तल विषयवासना ।। शिवसुज हाता ज्याता त्राता, हरे दुख घसनां ॥नयगम लंगें रंगें यंगें, बासील बहारिमा अमर अळतें मोहानीतें, वीरंथ सुतारि॥शार्धतिदु ॥ जय श्रीशीतसन्निनी ॥ ॥ शीतष प्रभु हरसा, शीतल अंग डीपांगे ॥ उल्याएम् पंथे, प्राणी गए। सुजसंगे तो वचन सुएातां, शीतस डेभ नहीं सोआशु लवीरतेष्ञह्मा, शासन हेवी अशी आशा ताना ॥ जय श्री श्रेयांसनी ॥ ॥ श्रीश्रेयांस सुहंम्रपामी, घेरछे रनवर हुए। हेवान्लङননই सेरे हुए। प्रनुने, छंडी सुरतरं सेवाला पूर्वापर अविरोधि स्यात्पछ, चाएगी सुधारस वेलीला मानवी भएश्जेसर खुपसायें, पीर हृध्यमां इेसीकाशा पार्धति॥ ॥ जथ श्रीवासुपून्यलनी ॥ ॥ विभस गुए। नगारं वासुपूज्यं सारं निहत विषविद्यारंभा तदैवत्यसारंगावधन रस पीहारं मुक्तितत्त्वंवियार, वीर विधन निवा रंस्तौमि थंडीहुभाशाशा र्धति॥डणा ॥ अथ श्रीविभसन्निनी ॥ ॥ विभसनाथ विभसगुएावस्या, न्निपह लोगी लवनिस्त रावाएगी पांत्रीश गुएा सक्षणी, छम्भुहु सुर प्रवरान्क्षएगी॥शा ॥ अथ श्रीजनंतनाथलनी ॥ ॥ ज्ञानाधिजगुएावरा निवसंत्यनंते, वन्त्र सुपर्व महिते निपा हपस्नेाभ्रंथाचे भतिवश प्रगतिस्मलस्त्या, पातालयांकुशि सुरीशु लवीरशक्षाशा ॥छति॥शा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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