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________________ ( 39 ) घेरपध रावो स्वामी, नारी उहे शिर नामीलाडुंग्नर गयवर जंघयढा वी, ढोल निशान वन्नडावो कासहगुई संगें पढते रंगे, वीरपरित्र खुणावोन्नगाशाप्रथम बजाए। घरम सारथिपट, जीने सुपनां धारला त्रीने सुपन पाण्डवसी योथे, पीर नग्नभखधिारन्नापिंयमेहीक्षा हे शिवपह, सातभे ग्नित्रेवीशळानाम्भे थिरावती संलसावी, पिठी डापुरी नगीशब्ााशा जन्म जङ्घार्थ डीलें, जिनवर पैत्यनमीनें लावरशी पडिएमए मुनिबंधन, संघ सयल जाभीनेंला आठविस सगें जभर प्रलावना, घन सुपात्रे हीनें काल जाहु शुश्वयए। सुगीने ज्ञान सुधारस पीनेंलाआतीरथमां विभलायस गिरिमां, मेरे महीधर नेभन्लामुनिवर भांडी निनवर मोहोटा, परख पब्लूसए। तेमला अवसर पाभी स्वाभीच्छल, जहु पश्चान्न वडार्घकाजिभाविन्य ग्निहेपी सि घार्छ, हिन हिन म्नधिऽवधार्थानां ॥रणा ॥ अथ पन्नूसएरानी स्तुति ॥ ॥ सत्तरलेही निपून्न रथीने, स्नात्र महोच्छव डीरेंन्गा ढोस हा मा लेरी नमेरी, असरी नाघ्सुएगी का वीरन्नि नागें लावना लावी, मानव लवईस सीतें । पख पन्नूसए। पूश्व पुएयें, खाव्यांखेभन्नशी काशाभास पासवली हसभ दुवासस, पैत्तारी जडडीनें काजीपरवजी हस होय उरीने, निन थोपी से पूछने लावडा उत्पनो छठ्ठउरीने, वीर परित्र सुशीनें का पडवेने हिन जन्म महोच्छर, धवल मंगलवर तीनें लाश ग्ना हिवस पगेंनभर पेसावी, जठ्ठमनुं तपडीतें लानागडे - तुनी परें डेवल सहीग्में, येशुललायें रद्दीनें कातेसाघर हिनत्रए। पुष्या एाऊ, गए।घर वाहचहीनें का पासनेभीसर अंतरभीने, ऋषल परित्र सुशीनें लाउआ जारशें सूत्रने समाधारी, संबछनी जामीनेंन्यापार शाने हिन स्वामी वच्छस, डीलें ष्ञघि वडार्धन्कामानविग्य उडे सडलभ नोरथ, पूरे हेवी सिप्याला तिला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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