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( ३७९ )
नी शीतल छाया समय सुंदर उहे सेवतां, भुगति तां इंसथायारेन
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॥ श्जथसप्तमपदं ॥
॥ मेरेर्घतनो चाहियें, नित्य दर्शन पाणीपटे आधिरएाम्भससे वाड, चरो यित्त ला॥ मेरेणाशामन पंडनडे महेलमें, भलु पासव सांनिपटनकडे हुर्घ रहुँ, मेरो लव रभाीं॥ मेरेगाशा जंतंरयामी जेतुं, अंतरिङ गुन गाडीं॥ आनंद उहे प्रलुपासल, भेंतो जवर न घ्यावीं । मेरे घेत नाथा ।धन
॥ जय अष्टभपहं ॥
॥ पित्तसेवा मलु परएाडी, उरले सुजाणा टेड जोधजिननि र्भत हूबे, भभता भिटन्नणायित्तनाशादेशाशनाभंहोहरी पही, निन लगति सहार्ध, गावत शुए। निनरानडे, सुर पहवी पाणायित्तनाशा शासनपति नित्य सभरियें, वीरल चरहाई॥श्रीनिनसालउद्देसहा, गुएा भरि गहुराणा चित्तनाआर्धति॥
॥ अथ नवभ पहं ॥
॥ हम प्रलुनिन ताहुरो, भुन नाम सुहावै॥रेशरात हिवसभो हिरह्यो, मन भधुर हावे॥हमणाशानश परिमल नग भहुमहे, ङ्गिभ हीनभलावे ॥भोला गुएा भारंहना, सुरनरसहु जावे ॥ पभणार शुष्प भनें सेवा सारतां, बांछित इस पावे ॥श्रीनिनसालसूरीस मलुनागुएा गावे ॥ पभणाना सार्धति
॥ अथ हशम पहं ॥
॥ इहारे अज्ञानीलबहूं, शुरै ज्ञान जतावे ॥ हारेनटेशाज्ज हुन विषधर विषलने, उश दूध पिलावे ॥ हारेणाशाबीजर जिननी
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