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लविलवनांक पा तङ सर्व निवारी॥१पट आनिवारएणी पातउत एसीजेन्नी, श्जवधिज्ञाने सुरवरया निाय धारना र हर्षित, बहे निन नि अनुधरा ॥ जनार्घ महोत्सव रएासभयें, शाश्वतानिन हेजीयें ॥ सविसन्नथाग्ने हेवहेवी, घंटानाद विशेषीयें ॥शावलीस श्पतिन्छ, डीघोषणा सुर सोङभांगानी पन्नवेल, परिजन सर्वश्जशोऽ मांद्वीप नाहमेल, नंदीश्वर सविग्भावियापशाश्वति पडिभाल, प्रण भेवधावे लाविया आलूट झालाविया प्रएाभे वधावे प्रलुने, हुषण हुले नायता ॥जत्रीश विधिनां उरीय नाटिङ, डीडी सुरपति भायता॥ हाथब्लेडी भानभोडी, जंगलावद्विजावती॥जपछरारंलाखतीन थला, नरिहागुएाजासावती ॥ना भए। अठ्ठार्धभांत पाय उष्या शिड न्नितएगा।तथा जासयल, जावन निनना जिंजघएगा।तस स्तवनाल, सद्दलूत अर्थबजाएातां । हमें पोहोचेल, पछीग्निना मसंलापतांचा
॥ ढास पोथी ॥ माहिनिएांह भयाउरो ॥ श्ने देशी । पर्व पन्नूस एामांसहा, रजभारि पडही चन्नवेरे ॥ संघ लस्तिन्य लावथी, सामी वत्सल शुल हावेरे ॥शामहोघ्य पर्व महिमानिधि ॥ने मांडणीशा साभीवत्सल श्येऽएा पासें, जेज्ञ धर्म समुदायरे ॥ जुपितुसायेंतासी यें, तुष्य साल रेल थायरे ॥मड़ीणाशा जीहार्घ यमशनऋषि, तिम कुशे जाएगा सत्यरे । भिच्छामि दुम्ड हेर्धने, द्विरी सेवे पापवत्तशा महोणाआते ज्या भाया मृषावाही, जावश्यङ निर्युम्ति मांहेशायैस परवाडी डील यें, पूल बिडास बीच्छाहें रे । महीना नाछती चार नायें, महा महोत्सव रथे हेबारे ॥ वालिगोभीय्यरे, प्रलु शासनना जे भेपारे । भहोणाच
।। ढास पांयमी ॥ जरशिङ मुनिवर पाप्याशोधरी॥जेहेशी अहभनुं तप वार्षिक पर्वभांशस्य रहित अविशेष्यथे । रङसापड लुना धर्मनुं, छारो में होय शुध्यरे ॥ तपने सेवी रे डंता विरतिना
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