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________________ (३५७) अध्यातभडीपयोगरे।ालविडापर्व अठ्ठाई जाराधामनपंछित सुषसाधोरे गालणापर्वणाशा ने जांएगी। पंच परमेष्टीबिडासना रे, वीत्तमयी गुएराउत॥शाश्वता पहसिष्य पकनेरे, वहतां पुण्यभ हुतरेपालविनाशालोचन उरए। युगल भुजेरे, नासिडाम, निलाड तासु शिरनालिहहिरे, लमूह मध्ये ध्यान डाहरे शालविणाशाखाल जन स्थानऽ उह्मांरे, ज्ञानीथें हेहु भन्नशाते हुभां विगत विषय पएोरे, - चित्तमांश्ऽ आधाररे ॥लविणा मानष्टम्भसहस इरिडारे, नवप घ्थापोलाव जाहिर यंत्ररथी उरीरे, घाशे जनंत जनुलावशालवि पाशुहि सातमथडीरे, जील अठ्ठार्घ भंडाए॥जशें तेंतासीशगुएरोएरीरे, जसीना जोसाहिङ घ्यानरे॥ालविणााडीत्त राध्ययन टीडा उहेरे को होयशाश्वती यात्रा उश्ता हेवनंहीश्वरेंरे, नरनिन ठाम सुपाचरे ॥लविगाजा ढालजीळासिध्ययक पध्वंहो । जे देशी । याषाढ शोभा सानी अठ्ठार्ध, निहांजलिग्रह अधिडाधाकृष्ण कुमारपाल परें पान सो,लवघ्था चित्त सार्घशात्राएगी, अठ्ठार्ध महोत्सव डरियें ॥ सचित्त जाल परिहरियेंरे । त्राएगीगाथा जांएगी। हिसिगभन तलेव र्षाालें, लक्षालक्ष विवेआग्जधति वस्तु पए। विश्तियें जहुईस, वं ज्यूल सुविवेऽरेशा प्राणीणाशानेने हेहग्रहीने भूम्या, तेहथी ने हिंसा थाय ॥ पापार्षएाग्नविरति योगें, नवें दुर्भ जंपायरेशमाएनाउ साह्यङ हेहनालवने गतिभां, वसीयातस होवे दुर्भ। शन्नरांठनेडिरिया सरजी, लगवती अंगनोभर्भरे॥प्राणीगणानाथभासी जाव श्यड डाडीस्सग्गना, पंथशत भानेठीसासा ॥ छतपनी आषीया डरतां, विरति धर्म बीन्नसारे प्राणीणापा ढालत्रीलान्निरयएगील घ्शहिशि निर्भलता घरे हे शी॥डात्तिङशुहिभांल, धर्भवासर अड घारीयें ॥ तिभवली शशुए क, पर्व अठ्ठार्ध संलारीयें॥ त्रएा अठ्ठार्धक, चौमासीत्रएाडारणीग Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrarg
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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