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________________ (333) लम्शे भोरी कृपाल ॥नगमांहें न्लएगे सहु, तुम हो हीन ध्यासामनुना शाजिरह गरिज निवान्शुं, जसरा साधाशापतितपावन परमेस ३, सेवा आधाशाप्रलुगाशालूत प्रेत छेडे नहीं, घरतां तुभध्यानागि‍ यवरना श्जसवारने, होडेम खड्डे धानामिलुगाआजांडीद्यो तुम डीपरें, दृढ समस्ति घारी ॥ लगति बछस लगवंतन्छ, डरोहेवडरामिलुगानापाप पडल न्नयें परां, चेहन विसरालम्हे सावएयतु भनाभथी, होबे भंगल भालालगायत साधा ।।हुभरी॥ज्यातनभांन्गारे, आजर भट्टीमें मिसन्ननां॥ञ्ज्या आभट्टी जोढए। भट्टी जिछावएा, भट्टीडारे सिशनाभट्टीअनाजून जनाया, न्सि परत्नभर सोलाएगा । यानाशापांयु पेरेछजी पेरें, पेरे भुल भुस जासाहभडीडा श्रोतारापैना, अंत जाजमें वासा ॥झ्याणाशापाय घ्शपथिशालवे, लवेशाडपंथासाजहुतळयेतोसोवरसळवें, रेश भरएाडी जाशापाज्यानाआपांयुडाये छ जीाये, अर्थ सजघ्नवान्ना पायपयीशुंसजहिअथै, प्रायेगढडे राज्याश्याना नाहिसा भरभ होर्घ नन्नने,न्ने मिसया सोगरन्ळालूघर योलालया पूराना, उजसगशिवेहरल " યાનાપા ॥ श्नथमलाती॥सुभति पयंपे सुनो मेरे सांधे, परलावमें भगननथाञोरे ॥ कुभति तियाडे दुहन लगे हो, पए। जाजरहोयगो पिछताजोरे॥पर घर तन्डे निघेर जाखोरे, जाडी जाडी जा जी मेरे सांर्धरे॥परणाशातृष्य तिहारेपुर परिहे, उहा सास में सा सन ललचातीरे ॥ श्याश्रवद्दार अध्यारडे आापे, उड़ा महापापत्नरेजी मराठीरे॥ापरनाशापार युगल भिसेहे दुरिन्ग्न, सोलि जेसन घ वीरेशाभोहुडे होनु सुत भनवाले, मोहन ताडी गली मतन्नवीरेशापरू आसन्न स्वलाच निन सहनसो तन्डे, पर मंदिर भेङहा घरतहो पापीरेशापरलावमें जसत होर्घ पानी, शिव वासीलयो हेजसाडीरे Ja Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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